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________________ आत्मा का दर्शन खण्ड-१ पंचम अर २०.तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले दो कोडाकोड़ी सागरोपम की स्थितिवाले सुषम वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं....अणंतगुण- दुःषमा नामक चतुर्थ अर के बीतने पर वर्ण आदि में परिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं अनंतगुण वृद्धि होने लगेगी। आयुष्मन् ! उस वर्द्धमान सुसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ । स्थिति में उत्सर्पिणी काल का सुषमा नामक पंचम अर समणाउसो! प्रारंभ होगा। षष्ठ अर २१.तीसे णं समाए तिहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं....अणंतगुण- परिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं सुसमसुसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! तीन कोड़ाकोड़ी सागरोपम की स्थितिवाले सुषमा नामक पंचम अर के बीतने पर वर्ण आदि में अनंतगुण वृद्धि होने लगेगी। आयुष्मन् ! उस वर्द्धमान स्थिति में उत्सर्पिणी काल का सुषम-सुषमा नामक छंठा अर प्रारंभ होगा।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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