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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-३
___'हीन आहर से बल, सौन्दर्य और पुष्टता नष्ट होती है। आयुष्य और ओज की हानि होती है। शरीर, मन, बुद्धि और इन्द्रिय का विनाश होता है। तथा अस्सी प्रकार के वायु रोग उठ खड़े होते है।' आयुर्वेद में कहा है
आहारमग्निः पचति, दोषानाहारवर्जितः। धातून् क्षीणेषु दोषेषु, जीवितं धातुसंक्षये॥
'अग्नि आहार को पचाती है। आहार के अभाव में वह दोषों को पचाती है। दोष क्षीण होने पर वह धातु को और धातुओं के क्षीण होने पर वह जीवन को लील जाती है।'
आहार कैसे करें?-स्वास्थ्यविदों ने भोजन करने की कुछ विधियां निश्चित की हैं। वे बहुत उपयोगी हैं। उनमें . पहली विधि यह है :
१. तन्मना भुंजीत-आहार करते समय मन आहार में ही रहना चाहिए। २. नातिद्रुतमश्नीयात्-बहुत जल्दी-जल्दी नहीं खाना चाहिए। ३. नातिविलम्बितमश्नीयात्-बहुत धीरे-धीरे नहीं खाना चाहिए।
४. अजल्पन् अहसन् तन्मना भुंजीत-भोजन करते समय न बातचीत करनी चाहिए और न हंसना चाहिए। मन केवल भोजन में रहना चाहिए।
ईष्याभयक्रोधपरिक्षतेन लुब्धेन रुग्दैन्यनिपीडितेन। प्रद्वेषयुक्तेन च सेव्यमानमन्नं न सम्यक् परिपाकमेति॥ मात्रयाप्यभ्यवहृतं, पथ्यं चान्नं न जीर्यति।
चिन्ताशोकभयक्रोधदुःखशय्याप्रजागरैः ॥ -'भोजन करते समय मन शांत रहना चाहिए। क्योंकि ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीनता, प्रद्वेष, चिंता, शोक, दुःख-शय्या और रात्रि-जागरण-इन अवस्थाओं से प्रभावित व्यक्ति जो खाता है उसका ठीक-ठीक परिपाक नहीं होता। वह यदि पथ्य आहार करता है और युक्त मात्रा में करता है, फिर भी उसका खाया हुआ भोजन उचित रूप में नहीं पचता।'
मेघः प्राह
१६.जायन्ते ये नियन्ते ते, मृताः पुनर्भवन्ति च।
तत्र किं जीवनं श्रेयः, श्रेयो वा मरणं भवेत्॥
मेघ बोला-जिनका जन्म होता है, उनकी मृत्यु होती है, जिनकी मृत्यु होती है, उनका पुनः जन्म होता है। ऐसी स्थिति में जीना श्रेय है या मरना?
भगवान् प्राह
१७. संयमासंयमाभ्यां तु, जीवनं द्विविधं भवेत्।
संयतं जीवनं श्रेयः, न श्रेयोऽसंयतं पुनः॥
भगवान् ने कहा-जीवन दो प्रकार का होता है-संयत जीवन और असंयत जीवन। संयत जीवन श्रेय है, असंयत जीवन श्रेय नहीं है।
१८.सकामाकामभेदेन, मरणं द्विविधं
सकाममरणं श्रेयः, नाऽकाममरणं
स्मृतम्। भवेत्॥
मृत्यु के दो प्रकार हैं-सकाम मृत्यु-आत्मविशुद्धि की भावना से युक्त और अकाम मृत्यु-आत्मविशुद्धि की भावना से रहित। सकाम मृत्यु श्रेय है। अकाम मृत्यु श्रेय नहीं है।