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________________ आत्मा का दर्शन २४६ खण्ड - ३ समय घट है जो मस्तक पर पानी लाने के लिए रखा हुआ है। घट शब्द भी वही है जो घट-क्रियायुक्त अर्थ का प्रतिपादन करे । नैगम नय ज्ञानाश्रयी विचार है जो संकल्प प्रधान होता है वह ज्ञानाश्रयी है। अर्थाश्रयी विचार वह होता है जो अर्थ को मानकर चले। संग्रह नय, व्यवहार नय और ऋजुसूत्र नय- ये तीनों अर्थाश्रयी विचार हैं। शब्द नय, समभिरूद्ध नय और एवंभूत नय ये तीनों शब्दाश्रयी विचार हैं। इनके आधार पर नयों की परिभाषा यों हो सकती है १. नैगम-संकल्प' या कल्पना की अपेक्षा होने वाला विचार। २. संग्रह - समूह की अपेक्षा से होने वाला विचार ३. व्यवहार व्यक्ति की अपेक्षा से होने वाला विचार । ४. ऋजुसूत्र - वर्तमान अवस्था की अपेक्षा से होने वाला विचार । ५. शब्द - यथाकाल, यथाकारक शब्द प्रयोग की अपेक्षा से होने वाला विचार । ६. समभिरूद - शब्द ही उत्पत्ति के अनुरूप शब्द प्रयोग की ७. एवंभूत-व्यक्ति के कार्यानुरूप शब्द प्रयोग की २०. सदसतोर्विवकेन, स्थैर्यं चित्तस्य जायते । नाऽस्थिरात्माऽपि साक्षरः ॥ २१. भविष्यति मम ज्ञानं, अध्येतव्यमतो मया । अजानन् सदसत्तत्त्वं न लोकः सत्यमश्नुते ॥ ॥ स्थितात्मा स्थापयेदन्यान, २२. लप्स्ये चित्तस्य सुस्थैर्य, अध्येतव्यमतो मया । अस्थिरात्मा पदार्थेषु, जानन्नपि विमुह्यति ॥ २३. आत्मानं स्थापयिष्यामि धर्मेऽध्येयमतो मया । धर्महीनो जनो लोके, तनुते दुःखसन्ततिम् ॥ २४. स्थितः परान् स्थापयिष्ये, धर्मेऽध्येयमतो मया । आचार्येव सदाचारं, प्रस्थापयितुमर्हति ॥ अपेक्षा से होने वाला विचार । अपेक्षा से होने वाला विचार । प्राचीन काल में शिक्षा के चार मुख्य उद्देश्य थे : सत् और असत् का विवेक होने पर चित्त की स्थिरता होती है। स्थितात्मा दूसरों को धर्म में स्थापित करता है जो स्थितात्मा नहीं होता, वह साक्षर होने पर भी वह कार्य नहीं कर सकता। 'मुझे ज्ञान होगा', इस उद्देश्य से मुझे अध्ययन करना चाहिए। जो जीव सत् और असत् तत्त्वों को नहीं जानता, वह सत्य को प्राप्त नहीं कर सकता । 'मैं एकाग्र चित्त बनूंगा' - इस उद्देश्य से मुझे अध्ययन करना चाहिए। अस्थिर आत्मा वाला व्यक्ति पदार्थों को जानता हुआ भी उनमें मूढ बन जाता है। 'अपनी आत्मा को धर्म में स्थापित करूंगा' - इस उद्देश्य से मुझे अध्ययन करना चाहिए। जो व्यक्ति धर्महीन है, वह संसार में दुःख की परंपरा को बढ़ाता है। 'मैं स्वयं स्थित होकर दूसरों को धर्म में स्थापित करूंगा' - इस उद्देश्य से मुझे अध्ययन करना चाहिए। आचारवान् व्यक्ति ही सदाचार की स्थापना कर सकता है। ॥ व्याख्या ॥ इन श्लोकों में 'शिक्षा क्यों' का सुन्दर समाधान दिया गया है। आज की शिक्षा का उद्देश्य है विषय का ज्ञान, बौद्धिक विकास।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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