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________________ उद्भव और विकास १२१ अ. ४ : जीवन प्रसंग महावीर का परिनिर्वाण श्रमण भगवान महावीर ने चरम वर्षावास मध्यम अपापा नगरी में हस्तिपालक राजा की रज्जुक सभा में किया। उस वर्षावास का चौथा महीना। सातवां पक्ष। २६. तत्थ णं जे से पावाए मज्झिमाए अस्थिपालगस्स रण्णो रज्जुगसभाए अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं उवागए। तस्स णं अंतरावासस्स जे से वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तियबहुले, तस्स णं कत्तियबहुलस्स पन्नरसी- पक्खेणं जा सा चरिमा रयणी तं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए विइक्कंते समुज्जाए। छिन्न-जाइ-जरा-मरण बंधणे. सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खपहीणे। कार्तिक का कृष्ण पक्ष। अमावस्या। रात्रि का पश्चिम भाग। उस समय श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण हुआ। उनके जन्म, जरा, मृत्यु के बंधन टूट गए। वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अंतकृत, परिनिर्वृत्त और सब दुःखों से मुक्त हो गए। जिस समय श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण हुआ उस समय चन्द्र नाम का दूसरा संवत्सर, प्रीतिवर्द्धन मास, नंदिवर्धन पक्ष, अग्निवेश दिन-जिसे उपशम कहा जाता है, देवानंदारात्रि-जिसे निर्ऋति भी कहा जाता है, अर्चि लव, मुहूर्त प्राण, स्तोक सिद्ध, नाग करण, सर्वार्थसिद्धि मुहूर्त और स्वातिनक्षत्र का योग था। चंदे नाम से दोच्चे संवच्छरे, पीतिवद्धणे मासे नंदिवखणे पक्खें अग्गिवेसे नाम से दिवसे उवसमेत्ति पवुच्चइ, देवाणंदा नाम सा रयणी निरातात्त पवच्च निरनिनि सिद्धे, नागे करणे, सव्वट्ठसिद्धे मुहुत्ते, साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएण कालगए विइक्कंते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। २७. जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए.... सा णं रयणी बहूहिं देवेहि य देवीहि य ओवयमाणेहि य उप्पयमाणेहि य उज्जोविया यावि होत्था। जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण हुआ, वह रात्रि नीचे उतर रहे और ऊपर जा रहे बहुतसे देव-देवियों के विमानों के प्रकाश से उद्योतमय हो गई। २८. जं. रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण कालगए....सा णं रयणी बहूहिं देवेहि य देवीहि य हुआ, वह रात्रि नीचे उतर रहे और ऊपर जा रहे बहुत-से ओवयमाणेहि य उप्पयमाणेहि य उप्पिंजलमाणभूया देव-देवियों के विमानों से रजोमय तथा शब्दायमान हो कहकहभूया यावि होत्था। गई। गौतम को कैवल्य २९. जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण कालगए....तं रयणिं च णं जेट्ठस्स गोयमस्स हुआ, उस रात्रि को उनके ज्येष्ठ अंतेवासी/शिष्य इंदभूइस्स अणगारस्स अंतेवासिस्स नायए, इन्द्रभूति गौतम का रागबन्धन विच्छिन्न हो गया। उन्हें पेज्जबंधणे वोच्छिन्ने अणंते अणुत्तरे.....केवल- अनन्त, अनुत्तर केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हुआ। वरनाणदंसणे समुप्पन्ने। दीपावली पर्व ३०. जं रयणिं च णं समणं भगवं महावीरे जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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