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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-२
कालगए.....तं रयणिं च णं नव मल्लई नव लिच्छई हुआ, उस अमावस्या की रात्रि को नवमल्लवी और कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो नवलिच्छवी-काशी-कौशल के अठारह गणराजाओं ने अमावसाए पाराभोयं पोसहोववासं पट्ठविंसु। गते प्रतिपूर्ण पौषध किया। से भावुज्जोए दव्बुज्जोयं करिस्सामो।
__भाव उद्योत चला गया, यह सोच उन्होंने द्रव्यउद्योत
करने का संकल्प किया।
भस्माराशि महाग्रह ३१. जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए.... जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण तं रयणिं च णं खुदाए भासरासी महग्गहे दोवास- हुआ, उस रात्रि में क्षुद्र स्वभाव वाला, दो हजार वर्ष की सहस्सट्ठिई समणस्स भगवओ महावीरस्स स्थिति का भस्मराशि नाम का महाग्रह उनके जन्म नक्षत्र जम्मनक्खत्तं सकते।
पर संक्रांत हुआ। जप्पभिई च णं से खुद्दाए भासरासी महग्गहे जब से क्षुद्र स्वभाववाला, दो हजार वर्ष की स्थिति । दोवाससहस्सट्ठिई समणस्स भगवओ महावीरस्स का भस्मराशि नाम का महाग्रह श्रमण भगवान महावीर के जम्मनक्खत्तं संकंते तप्पभिई च णं समणाणं जन्म नक्षत्र पर संक्रांत हुआ, तब से श्रमण निर्ग्रन्थ और निग्गंथाणं निग्गंथीण य नो उदिए-उदिए निर्ग्रन्थियों का उदितोदित रूप में पूजा-सत्कार नहीं रहा। पूयासक्कारे पवत्तति।
जया णं से खुद्दाए भासरासी महग्गहे दोवास- क्षुद्र स्वभाव वाले, दो हजार वर्ष की स्थिति वाले सहस्सठिई समणस्स भगवओ महावीरस्स भस्मराशि नाम के महाग्रह के श्रमण भगवान महावीर के जम्मनक्खत्ताओ वीतिक्कंते भविस्सइ तया णं । जन्म नक्षत्र से व्यतिक्रांत होने पर पुनः श्रमण निर्ग्रन्थसमणाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य उदिए-उदिए निर्ग्रन्थिकों का उदितोदित रूप में पूजा सत्कार होगा। . पूयासक्कारे पवत्तिस्सति।