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________________ आत्मा का दर्शन १२० खण्ड-२ समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विउले रोगायके पाउन्भूए। उज्जले जाव छउमत्थे चेव कालं करेस्सति, वे उस तीव्र वेदना से अभिभूत हो छद्मस्थ अवस्था वदिस्संति य णं अण्णतित्थिया-छउमत्थे चेव में ही काल कर जाएंगे। अन्यतीर्थिक कहेंगे-महावीर कालगए। छद्मस्थ अवस्था में ही काल धर्म को प्राप्त हो गए हैं। .. इमेणं एयारूवेणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं इस अत्यधिक मानसिक दुःख से दुःखी हो तू अभिभूए समाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभित्ता मालुकाकच्छ के भीतर जा विलाप करता हआ जोर-जोर । जेणेव मालयाकच्छए तेणेव उवागच्छित्ता से रोने लगा। मालुयाकच्छगं अंतो-अंतो अणुपविसित्ता महयामहया सहेणं कुहुकुहुस्स परुण्णे। से नूणं ते सीहा! अढे समठे ? सिंह! क्या यह सही है? हंता अत्थि। हां, सही है। तं नो खलु अहं सीहा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सिंह! मैं मंखलिपुत्र गोशालक के तप और तेज से तवेणं तेएणं अण्णाइढे समाणे अंतो छण्डं मासाणं अप्रभावित रहता हुआ छह महीने के भीतर मृत्यु को प्राप्त पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतिए छउमत्थे चेव नहीं होऊंगा। कालं करेस्सं। अहण्णं अद्धसोलसवासाइं जिणे सुहत्थी मैं अभी साढ़े पन्द्रह वर्ष तक केवली अवस्था में श्रेष्ठ विहरिस्सामि। हस्ती की तरह जनपद विहार करूंगा। भगवान महावीर के वर्षावास २५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे अट्ठियगामं नीसाए पढमं अंतरावासं वासावासं उवागए। श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम वर्षावास अस्थिग्राम में किया। दो वर्षावास चंपा और पृष्ठचंपा में किए। चंपं च पिठिचंपं च नीसाए तओ अंतरावासे वासावासं उवागए। वेसालिं नगरिं वाणियगामं च नीसाए दुवालस अंतरावासे वासावासं उवागए। रायगिहं नगरं नालंदं च बाहिरियं नीसाए चोदस अंतरावासे वासावासं उवागए। छ मिहिलाए, दो भदियाए, एगं आलभियाए, एगं सावत्थीए, एगं पणियभूमीए। बारह वर्षावास वैशाली नगरी तथा वाणिज्यग्राम में किए। चवदह वर्षावास राजगृह नगर और उसके उपनगर नालंदा में किए। ___ छह वर्षावास मिथिला में, दो भद्रिका में, एक आलभिका में, एक श्रावस्ती में और एक पण्यभूमि (अनार्यदश) में किया। श्रमण भगवान महावीर ने अन्तिम वर्षावास मध्यम अपापा नगरी में हस्तिपालक राजा की रज्जुक सभा में किया। एगं पावाए मज्झिमाए हत्थिपालगस्स रण्णो रज्जुगसभाए अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं उवागए।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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