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उद्भव और विकास
अण्णाइट्ठे समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतिए छउमत्थे चेव कालं करिस्सति ।
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मुनि सिंह का मानसिक दुःख
२४. तए णं तस्स सीहस्स अणगारस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु ममं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विउले रोगायंके पाउम्भूए ।
उज्जले जाव छउमत्थे चेव कालं करेस्सति, वदिस्संति य णं अण्णतित्थिया-छउमत्थे चेव
आविष्ट होकर छह महीने के कालधर्म को प्राप्त होंगे।
कालगए।
इमेणं एयारूवेणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभइ, पच्चोरुभित्ता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उबागच्छइ, उवागच्छित्ता मालुया कच्छगं अंतोअंतो अणुपविसर, अणुपविसित्ता महया - महया सणं कुहुकुहुस्स परुणे।
अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेति, आमंतेत्ता एवं वयासी
पच्चोरुभइ,
एवं खलु अज्जो ममं अंतेवासी सीहे नामं अणगारे....आयावणभूमीओ पच्चोरुभित्ता... .... मालुया - कच्छगं अंतो- अंतो अणुपविसह, अणुपविसित्ता महया महया सहेणं कुहुकुहुस्स परुण्णे । तं गच्छह णं अज्जो! तुब्भे सीहं अणगारं सद्दाह ।
तए णं से सीहे अणगारे समणेहिं निग्गंथेहिं सद्धिं.... जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो याहिण-पयाहिणं जाव पज्जुवासति । सीहादि । समणे भगवं महावीरे सीहं अणगारं एवं बयासी
से नूणं ते सीहा ! झाणंतरिया वट्टमाणस्स अयमेयारूवे.......मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेगस्स
अ. ४ : जीवन प्रसंग भीतर छद्मस्थ अवस्था में
सिंह अणगार को ध्यानावस्था में इस प्रकार का मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ-मेरे धमाचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण भगवान महावीर के शरीर में विपुल रोगातंक उत्पन्न हो गया।
वे उस तीव्र वेदना से अभिभूत हो छद्मस्थ अवस्था में काल कर जाएंगे। अन्यतीर्थिक कहेंगे-महावीर छद्मस्थ अवस्था में ही कालधर्म को प्राप्त हो गए।
इस अत्यधिक मानसिक दुःख से दुःखी बना वह आतापन भूमि से निकला । मालुकाकच्छ में प्रविष्ट हुआ और उसके मध्य में विलाप करता हुआ जोर-जोर से रोने
लगा।
श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों को आमंत्रित कर कहा
आर्यो ! मेरा शिष्य सिंह अणगार आतापनभूमि से निकलकर मालुकाकच्छ के भीतर गया है। वहां विलाप करता हुआ जोर-जोर से रो रहा है। आर्यो! तुम जाओ और उसको बुलाकर लाओ ।
सिंह अणगार श्रमण निर्ग्रन्थों के साथ श्रमण भगवान महावीर के पास आया। दायीं ओर से दायीं ओर तक तीन बार प्रदक्षिणा कर उपासना करने लगा।
सिंह अणगार को संबोधित कर श्रमण भगवान महावीर ने कहा
सिंह! ध्यानावस्था में तुझे इस प्रकार मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ- मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण भगवान महावीर के शरीर में चिपुल रोगातंक उत्पन्न हुआ है।