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________________ आत्मा का दर्शन पप्पुयलोयणा......अणिमिसाए आगयपण्या दिट्ठीए देहमाणी-देहमाणी चिट्ठा । य तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तस्स माहणस्स देवानंदा माहणीए तीसे महतिमहालियाए परिसाए...... धम्मं परिकहेइ । तए णं से उसभदत्ते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे उट्ठाए उट्ठेह, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं एवं वदासी..... इच्छामि णं देवाणुप्पिया! सयमेव पव्वावियं । तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तं माहणं सयमेव पव्वावे | तए णं सा देवाणंदा माहणी....... एवं जहा उसभदत्तो तहेव......सयमेव पव्वावेइ । ११६ २२. तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नगरे होत्था ।..... तत्थ णं वाणियगामे नगरे सोमिले नामं माहणे परिवसति । अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए । रिव्वेद जाव सुपरिनिट्ठिए। पंचण्हं खंडियसयाणं..... विहरइ । सोमिल तणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । तणं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे......मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु समणे नायपुत्ते पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामा गामं दूइज्माणे इहेव वाणियगामे नगरे दूतिपलासए चेइए..... विहरइ । तं गच्छामि गं समणस्स नायपुत्तस्स अंतियं पाउब्भवामि । इमाई च णं एयारूवाइं अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाहं वागरणाई पुच्छिस्सामि, तं जइ मे से इमाइं एयारूवाइं अट्ठाई जाव वागरणाई वागरेहिति ततो णं वंदीहामि नमसीहामि जाव पज्जुवासीहामि, अह मे से इमाइं अट्ठाई जाव वागरणाई नो वागरेहिति ततो णं एएहिं चेव अट्ठेहिं य जाव वागरणेहि य निप्पट्ठपसिणवागरणं करेस्सामि । खण्ड - २ विशाल परिषद् के मध्य स्थित श्रमण भगवान महावीर ने ऋषभदत्त ब्राह्मण और देवानंदा ब्राह्मणी को धर्म सुनाया। ऋषभदत्त ब्राह्मण श्रमण भगवान महावीर से धर्म सुनकर हृष्ट-तुष्ट हुआ। उसने कहा- भंते! मैं आपके पास प्रव्रजित होना चाहता हूं। श्रमण भगवान महावीर ने ऋषभदत्त को प्रव्रजित किया । देवानंदा ब्राह्मणी भी श्रमण भगवान महावीर से धर्म सुनकर ऋषभदत्त की तरह दीक्षित हो गई। वाणिज्यग्राम नाम का नगर । वहां सोमिल नाम का ब्राह्मण रहता था। वह समृद्ध और प्रभावशाली था । ऋग्वेद आदि में निष्णात था। उसके ५०० छात्र थे। श्रमण भगवान महावीर वाणिज्यग्राम नगर में आए। सोमिल ब्राह्मण ने महावीर के आगमन का संवाद सुना। उसे मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ श्रमण ज्ञातपुत्र महावीर ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए वाणिज्य ग्राम नगर के दूतिपलाश चैत्य में आए हैं। मैं उनके पास जाऊं। इन अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण और व्याकरण के विषय में पूछूं। यदि वे इनका सही उत्तर देंगे तो मैं उन्हें वंदननमस्कार करूंगा एवं पर्युपासना करूंगा। यदि वे इन अर्थ आदि का उत्तर नहीं देंगे तो मैं उन्हें अपने अर्थ आदि से निरुत्तर कर दूंगा।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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