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________________ आत्मा का दर्शन ११४ खण्ड-२ 'णाविया मे, णाविया मे नाविओ विव णावमयं नाविक बना। नौकामय पात्र को जल में प्रवाहित कर पडिग्गहणं उदगंसि पव्वाहमाणे पव्वाहमाणे क्रीड़ा करने लगा। अभिरमइ। तं च थेरा अहक्ख। जेणेव समणे भगवं महावीरे स्थविरों ने उसे देखा। वे श्रमण भगवान महावीर के तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वदासी-एवं पास आए और व्यंग्य में बोले-भंते! आपका यह शिष्य खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी अइमुत्ते नाम कुमारश्रमण अतिमुक्तक कितने भवों में सिद्ध होगा? कुमारसमणे, से णं भंते! अइमुत्ते कुमारसमणे प्रशांत होगा? मुक्त होगा? परिनिर्वत होगा एवं सब दुःखों कतिहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिहिति बुज्झिहिति का अंत करेगा? मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिति? अज्जोति! समणे भगवं महावीरे ते थेरे एवं श्रमण भगवान महावीर ने स्थविरों से कहा-आर्यो! वयासी-एवं खलु अज्जो! ममं अंतेवासी अइमुत्ते मेरा शिष्य कुमारश्रमण प्रकृति से भद्र और विनम्र है। यह नाम कुमारसमणे पगइभइए जाव विणीए। से णं इसी भव में सिद्ध होगा। सभी दुःखों का अंत करेगा। अइमुत्ते कुमारसमणे इमेणं चेव भवग्गहणेणं सिन्झिहिति जाव अंतं करेहिति। तं मा णं अज्जो! तुब्भे अइमत्तं कुमारसमणं हीलेह ___ आर्यों! तुम इस कुमारश्रमण अतिमुक्तक की निंदह खिंसह गरहह अवमण्णह। अवेहलना मत करो। निन्दा मत करो। तुब्भे णं देवाणुप्पिया! अइमुत्तं कुमारसमणं देवानुप्रिय! तुम . कुमारश्रमण अतिमुक्तक का अगिलाए संगिण्हह, अगिलाए उवगिण्हह, अग्लानभाव से संरक्षण करो, सार-संभाल करो। अगिलाए भत्तेणं पाणणं विणएणं वेयावडियं करेह। भक्तपान के द्वारा अग्लानभाव से, विनीतभाव से सेवा शुश्रूषा करो। अइमुत्ते णं कुमारसमणे अंतकरे चेव, अंतिम- यह कुमारश्रमण अतिमुक्तक इसी भव में संसारचक्र सरीरिए चेव। का अंत करने वाला है। अंतिम शरीरी है। तए णं ते थेरा भगवंतो समणेणं भगवया महावीरेणं श्रमण भगवान महावीर से ऐंसा सुन स्थविरों ने एवं वुत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वंदंति महावीर को वंदन-नमस्कार किया। नमसंति। अइमुत्तं कुमारसमणं अगिलाए संगिण्हंति, स्थविर कुमारश्रमण अतिमुक्तक की अग्लानभाव से अगिलाए उवगिण्हंति, अगिलाए भत्तेणं पाणेणं सेवा-शुश्रूषा करने लगे। विणएणं वेयावडियं करेंति। देवानंदा माहनकुंडग्राम। वहां ऋषभदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। २१.तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकंडग्गामे नयरे होत्था।.......तत्थ णं माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्ते नामं माहणे परिवसइ। तस्स णं उसभदत्तस्स माहणस्स देवाणंदा नाम माहणी होत्था। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। ऋषभदत्त की पत्नी का नाम था-देवानंदा। एक बार भगवान महावीर माहनकुंडग्राम पधारे।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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