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________________ उद्भव और विकास अ.४: जीवन प्रसंग जानते और जिसे नहीं जानते, उसे जानते हो। माता-पिता! मैं जानता हूं जो जन्म लेता है, वह अवश्य मरता है। पर मैं नहीं जानता कि वह कब, कहां, कैसे और कितनी अवस्था में मरता है ? वयासी-कहं णं तुमं पुत्ता! जं चेव जाणसि तं चेव न जाणसि? जंचेव न जाणसि तं चेव जाणसि? तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-जाणामि अहं अम्मयाओ! जहा जाएणं अवस्स मरियव्वं, न जाणामि अहं अम्मयाओ! काहे वा कहिं वा कहं वा कियच्चिरेण वा? न जाणामि णं अम्मयाओ! केहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवेसु- उववज्जंति, जाणामि णं अम्मयाओ! जहा सएहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइय-तिरिक्खजोणिय- मणुस्स-देवेसु उववज्जंति। एवं खलु अहं.अम्मयाओ! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि। माता-पिता! मैं नहीं जानता कि किन कर्मायतनों से जीव नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवयोनि में उत्पन्न होता है। मैं जानता हूं कि जीव अपने ही कर्यायतनों से नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवयोनि में उत्पन्न होता है। माता-पिता! इसलिए मैंने कहा-मैं जिसे जानता हूं, उसे नहीं जानता और जिसे नहीं जानता हूं, उसे जानता - तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए माता-पिता! मैं अब आपकी अनुमति प्राप्त कर जाव पव्वइत्तए। प्रवजित होना चाहता हूं। तए णं तं अमुत्तं कुमारं अम्मापियरो जाहे नो ___ माता-पिता जब कुमार अतिमुक्तक. को अनेक । संचाएंति बहूहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य । युक्तियों द्वारा अपने निश्चय से विचलित नहीं कर सके सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा । तब अनिच्छा से मुनि बनने की स्वीकृति दी और पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे कहा-पुत्र! हम एक दिन के लिए तुम्हारी राज्य श्री देखना अकामकाई चेव अझ्मुत्तं कुमारं एवं वयासी-तं चाहते हैं। इच्छामो ते जाया! एगदिवसमवि रायसिरिं पासेत्तए। तए णं से अहमुत्ते कुमारे अम्मापिउवयणमणुयत्त- कुमार अतिमुक्तक ने माता-पिता के इस कथन को माणे तुसिणीए संचिट्ठइ। अभिसेओ..... मौनभाव से स्वीकृत किया। उसका राज्याभिषेक हुआ। निक्खमणं..... एक दिन का राज्य कर कुमार अतिमुक्तक भगवान महावीर के पास दीक्षित हो गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महा- श्रमण भगवान महावीर का शिष्य कुमारश्रमण वीरस्स अंतेवासी अइमुत्ते नाम कुमारसमणे अतिमुक्तक प्रकृति से भद्र और उपशांत था। पगइभइए पगइउवसंते। पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमहवसंपन्ने उसके क्रोध, मान, माया और लोभ प्रतनु थे। वह अल्लीणे विणीए। कोमल व्यवहार वाला, आत्मलीन और विनम्र था। तए णं से अइमुत्ते कुमारसमणे अण्णया कयाइ ___ एक दिन भारी वर्षा हुई। वर्षा समाप्त होने पर कुमार महावुाठकायसि निवयमाणसि कक्खपडिग्गह- श्रमण अतिमुक्तक रजोहरण और पात्र लेकर शौच के रयहरणमायाए बहिया संपठिए विहाराए। लए बाहर गया। तए णं से अइमुत्ते कुमारसमणे वाहयं वहमाणं कुमारश्रमण अतिमुक्तक ने पानी के प्रवाह को देखा। पासइ, पासित्ता मट्टियाए पालिं बंधइ, बंधित्ता उसने मिट्टी की पाल बांधी। पात्र को नौका बनाया। स्वयं
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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