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________________ आत्मा का दर्शन ११२ खण्ड-२. तए णं से भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमार एवं भगवान गौतम ने कुमार अतिमुक्तक से कहा-श्रमण वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! मम धम्मायरिए भगवान महावीर मेरे धर्माचार्य हैं, धर्मोपदेशक हैं। वे इसी धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे....इहेव पोलास- पोलाशपुर नगर के बाहर श्रीवन नाम के उद्यान में संयम पुरस्स नगरस्स बहिया सिरिवणे और तप से अपने आपको भावित करते हुए रह रहे हैं। उज्जाणे....संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे हम वहां रहते हैं। विहरइ। तत्थ णं अम्हे परिवसामो। तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं कुमार अतिमुक्तक ने गौतम से कहा-भंते! मैं भी वयासी-गच्छामि णं भंते! अहं तुब्भेहिं सद्धिं समणं आपके साथ चलता हूं श्रमण भगवान महावीर के चरणों भगवं महावीरं पायवंदए। में वंदन करने के लिए। अहासुहं देवाणुप्पिया! देवानुप्रिय! जैसी तुम्हारी इच्छा। तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवया गोयमेणं सद्धिं कुमार अतिमुक्तक गौतम के साथ श्रमण भगवान . जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, महावीर के पास पहुंचा। दायीं ओर से दायीं ओर तक उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो तीन बार प्रदक्षिणा की और पर्युपासना करने लगा। आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ जाव पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे अइमुत्तस्स कुमारस्स उस विशाल परिषद् के मध्यस्थित भगवान महावीर तीसे य महइमहालियाए परिसाए मज्झगए विचित्तं ने कुमार अतिमुक्तक को विचित्र प्रकार का धर्म धम्ममाइक्खइ। बतलाया। तए णं से अइमुत्ते कुमारे समणस्स भगवओ महा- कुमार अतिमुक्तक श्रमण भगवान महावीर के पास वीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुढे एवं धर्म सुनकर हृष्ट-तुष्ट हुआ और बोला-भंते ! मैं निग्रंथ वयासी-सहहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव...... प्रवचन में श्रद्धा करता हूं। मैं अपने माता-पिता को अम्मापियरो आपुच्छामि तए णं अहं देवाणुप्पियाणं । पूछकर आपके पास दीक्षित होना चाहता हूं। अंतिए जाव पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया! देवानुप्रिय! जैसी तुम्हारी इच्छा। तए णं से अइमुत्ते कुमारे जेणेव अम्मापियरो तेणेव कुमार अतिमुक्तक माता-पिता के पास आया और उवागए जाव इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं बोला-माता-पिता! मैं आपकी आज्ञा प्राप्त कर मुंड हो अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महा- श्रमण भगवान महावीर के पास गृहवांस को छोड़ वीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं गृहत्यागी होना चाहता हूं। पव्वइत्तए। तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं माता-पिता बोले-पुत्र ! अभी तुम बालक हो। तुम्हारी वयासी-बाले सि ताव तुमं पुत्ता! असंबुद्धे, किं णं समझ अपरिपक्व है। तुम धर्म को क्या जानते हो? तुमं जाणसि धम्मं? तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं माता-पिता! मैं जिसे जानता हूं, उसे नहीं जानता वयासी-एवं खलु अहं अम्मयाओ! जं चेव और जिसे नहीं जानता, उसे जानता हूं। जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि। तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं पुत्र! यह कैसे? तुम जिसे जानते हो, उसे नहीं
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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