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उद्भव और विकास
परिकहेइ । धम्मका भाणियव्वा । तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिए...... समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो याहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसह, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीसहामि णं भंते! निम्गंथं पावयणं....... तं इच्छामि देवाणुप्पिया ! सयमेव पव्वावियं । तए णं समणे भगवं महावीरे खंदयं कच्चायणसगोत्तं सयमेव पव्वावे ।
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अतिमुक्तक
२०. तए णं भगवं गोयमे पोलासपुरे नयरे उच्चनीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खारिए अमाणे इंदट्ठाणस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ । तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागए, भगवं गोयमं एवं वयासी के णं भंते! तुब्भे ? किं वा अडह ? तए णं भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी - अम्हे णं देवाणुप्पिया ! समणा निग्गंथा इरियासमिया जाव गुत्तबंभयारी उच्च-नीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरिए अडामो।..
तए णं अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी - एह णं भंते! तुब्भे जा णं अहं तुब्भं भिक्खं दवावेमी त कट्टु भगवं गोयमं अंगुलीए गेण्हइ, हित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। तए णं सा सिरिदेवी भगवं गोयमं एज्जमाणं पास, पासित्ता हट्ठतुट्ठा आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अम्भुट्ठेत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागया । भगवं गोयमं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता विउलेणं असण- पाणखाइम साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता पडिविसज्जेइ ।
तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी - कहिं णं भंते! तुब्भे परिवसह ?
अ. ४ : जीवन प्रसंग
स्कंदक श्रमण भगवान महावीर से धर्म सुनकर हृष्टतुष्ट हुआ । श्रमण भगवान महावीर को दायीं ओर से दायीं ओर तक तीन बार प्रदक्षिणा की। वंदन नमस्कार किया और बोला
भंते! मेरी निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा है। देवानुप्रिय ! मैं प्रव्रजित होना चाहता हूं।
श्रमण भगवान महावीर ने स्कंदक को प्रव्रजित किया।
भगवान गौतम पोलासपुर नगर में उच्च, निम्न और मध्यम कुलों की सामुदायिक भिक्षा कर रहे थे। वे भिक्षाचर्या करते हुए इन्द्र-स्थान के पास से निकले। *
कुमार अतिमुक्तक ने भगवान गौतम को अपने निकट से जाते हुए देखा। देखते ही वह भगवान गौतम के पास आया और बोला- भंते! आप कौन हैं ? क्यों घूमते हैं ?
गौतम ने कुमार अतिमुक्तक से कहा- देवानुप्रिय ! हम श्रमण निर्ग्रन्थ हैं। देखकर चलते हैं। यावत् गुप्ति युक्त ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। उच्च, निम्न और मध्यम कुलों से सामुदायिक भिक्षा लाने के लिए घूमते हैं।
कुमार अतिमुक्तक ने कहा- भंते! चलो, मैं आपको भिक्षा दिलाता हूं। कुमार अतिमुक्तक ने ऐसा कह गौतम का हाथ पकड़ा और उन्हें अपने घर ले आया ।
कुमार अतिमुक्तक की माता श्रीदेवी ने भगवान गौतम को आ हुए देखा। वह हृष्ट-तुष्ट हो आसन से उठी । गौतम के पास आई । दायीं ओर से दायीं ओर तक तीन बार प्रदक्षिणा की। वंदन - नमस्कार किया । विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य का दान दिया। गौतम भिक्षा लेकर चले गए।
कुमार अतिमुक्तक ने भगवान गौतम से पूछा- भंते ! आप कहां रहते हैं ?