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________________ आत्मा का दर्शन तस्स वि य णं अयमट्ठे - एवं खलु खंदया ! मए दुविहे मरणे पण्णत्ते, तं जहा - बालमरणे य, पंडियमरणे य से किं तं बालमरणे ? बालमरणे दुवालसविहे पण्णत्ते, तं जहावलयमरणे वसट्ठमरणे अंतोसल्लमरणे तब्भवमरणे' गिरिपडणे तरुपडणे जलप्पवेसे जलणप्पवेसे विसभक्खणे सत्थोवाडणे वेहाणसे गिद्धपिट्ठे इच्चेतेणं खंदया ! दुवालसविहेणं बालमरणेणं मरमाणे जीवे ....... अणाइयं च णं अणवदग्गं चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टइ। सेत्तं मरमाणे वड्ढइ - वड्ढइ | से किं तं पंडियमरणे ? पंडियमरणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा पाओवगमणे य ११० भत्तपच्चक्खाणे य इच्चेतेणं खंदया ! दुविहेणं पंडियमरणेणं मरमाणे जीवे ..... अणाइयं च णं अणवदग्गं चाउरंतं संसारकंतारं वीईवयइ । सेत्तं मरमाणे हायइहाय ।...... तए णं समणे भगवं महावीरे खंदयस्स कच्चायणसगोत्तस्स, तीसे य महझ्महालियाए परिसाए धम्मं १. मोत्तुं अकम्मभूमगनरतिरिए सुरगणे अनेरइए । सेसाणं जीवाणं तब्भवमरणं तु केसिंचि ॥ उत्तरा. नि. गा. २२१ जीव घटता है ? स्कंदक उसका यह अर्थ है- मैंने दो प्रकार के मरण बतलाए हैं - बालमरण, पंडित करण । बालमरण क्या है ? बालमरण के बारह प्रकार हैंवलयमरण-संयम जीवन से च्युत होकर मरना। वशार्तमरण - इन्द्रियों के वशवर्ती होकर मरना । निदान आदि आंतरिक शल्यों अंतः शल्यमरण - माया, खण्ड - २ की स्थिति में मरना। तद्भवमरण - वर्तमान भव से होने वाली मृत्यु । गिरिपतन - पर्वत से गिरकर मरना । तरुपतन-वृक्ष से गिरकर मरना । जलप्रवेश - जल में डूबकर मरना । ज्वलन प्रवेश - अग्नि में प्रवेश कर मरना । विषभक्षण - जहर खाकर मरना । शस्त्रावपातन-छुरी आदि शस्त्रों से शरीर को विदीर्ण कर मरना । वैहानश - फांसी लगा वृक्ष की शाखा से लटककर मरना । गृद्धस्पृष्ट- गीध द्वारा मांस नोचे जाने पर मरना । स्कंदक! इस बारह प्रकार के बालमरण से मरता हुआ जीव अनादि - अनन्त, चतुर्गत्यात्मक संसार कान्तार में अनुपर्यटन करता है। इस बालमरण से मरता हुआजीव बढ़ता है। पंडित मरण क्या है ? पंडित मरण के दो प्रकार हैंप्रायोपगमन-परिचर्या विरहित अनशनपूर्वक मरण । भक्त प्रत्याख्यान मरण-अनशनपूर्वक मरण स्कंदक! इस द्विविध पंडित मरण से मरता हुआ जीव अनादि-अनन्त, चतुर्गत्यात्मक संसार कान्तार का व्यतिक्रमण करता है। इस पंडित मरण से मरता हुआ जीव घटता है। विशाल परिषद् के मध्य स्थित श्रमण भगवान महावीर ने स्कंदक को धर्म का संबोध दिया।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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