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________________ आत्मा का दर्शन १०८ खण्ड-२ स्कंदक १९.गोयमाइ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं श्रमण भगवान महावीर ने गौतम को संबोधित कर वयासी-दच्छिसि णं गोयमा! पुव्वसंगइयं। कहा-गौतम! तुम आज अपने पूर्व मित्र को देखोगे। कं भंते? भंते! किसे? खंदयं नाम। स्कंदक को। से काहे वा? किह वा? केवच्चिरेण वा? भंते ! मैं उसे कब, कैसे और कितने समय के पश्चात देखूगा? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं सा- गौतम! श्रावस्ती नगरी। गर्दभाल का शिष्य वत्थी नाम नगरी होत्था। तत्थ णं सावत्थीए कात्यायनगोत्रीय स्कंदक नाम का परिव्राजक। उसने मेरे नयरीए गहभालस्स अंतेवासी खंदए नाम पास आने का संकल्प किया है। वह आ ही रहा है। कच्चायणसगोत्ते परिव्वायए परिवसइ। तं चेव जाव निकट आ गया है। थोड़ी दूरी पर है। मार्ग में चल रहा है। जेणेव ममं अंतिए, तेणेव पहारेत्थ गमणाए। से गौतम! तुम उसे आज ही देखोगे। अदूरागते बहुसंपत्ते अद्धाणपडिवण्णे अंतरापहे वट्टइ। अज्जेव णं दच्छिसि गोयमा! भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी-पहू णं भंते! किया और पूछा-भंते! क्या स्कंदक गृहवास छोड़कर खंदए कच्चायणसगोत्ते देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे आपके पास गृहत्यागी बनने में समर्थ है ? भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए? हंता पभू। हां, समर्थ है। जावं च णं समणे भगवं महावीरे भगवओ श्रमण भगवान महावीर गौतम को यह कह ही रहे थे। गोयमस्स एयमढें परिकहेइ, तावं च णं से खदए कि उसी समय स्कंदक उस स्थान पर पहुंच गया। कच्चायणसगोत्ते तं देसं हव्वमागए। तए णं भगवं गोयमे खंदयं कच्चायणसगोत्तं स्कंदक को निकट आया हुआ जानकर गौतम शीघ्र अदूरागतं जाणित्ता खिप्पामेव अब्भुढेति, ही खड़े हुए। सामने गए। स्कंदक के पास पहुंचकर अब्भुठेत्ता खिप्पामेव पच्चुवगच्छइ। जेणेव खंदए बोले- स्वागत है स्कंदक! सुस्वागत है स्कंदक! कच्चायणसगोत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खंदयं कच्चायणसगोत्तं एवं वयासी हे खंदया! सागयं खंदया! सुसागयं खंदया! अणुरागयं खंदया! सागयमणुरागयं खंदया! • से नूणं तुमं खंदया! सावत्थीए नयरीए पिंगलएणं स्कंदक! श्रावस्ती नगरी में वैशालिक श्रावक निग्रंथ नियंठेणं वेसालियसावएणं इणमक्खेवं पुच्छिए- पिंगल ने तुम से यह प्रश्न पूछा-मागध! लोक सांत है मागहा! किं सअंते लोगे? अणंते लोगे? एवं तं या अनन्त? इस प्रश्न को तुम उत्तरित नहीं कर सके, तब चेव जाव जेणेव इहं, तेणेव हव्वमागए। से नूणं । तुमने यहां आने का निश्चय किया और शीघ्र ही यहां खंदया! अठे समठे ? पहुंच गए। स्कंदक क्या यह सही है? हंता अत्थि। हां, सही है। तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते भगवं गोयम एवं स्कंदक ने गौतम से कहा- गौतम! यहां कौन ऐसा
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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