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उद्भव और विकास
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अ.४:जीवन प्रसंग १३.अनि सूइयं व सुक्कं वा सीयपिंडं पुराणकुम्मासं। भोजन व्यञ्जन सहित हो या व्यञ्जन रहित, ठंडा . अदु बुक्कसं पुलागं वा लद्धे पिंडे अलद्धए दविए॥ भात हो या बासी उड़द, सत्तू हो या चना, रूक्ष भोजन
प्राप्त हो अथवा नहीं-इन सब स्थितियों में भगवान राग अथवा द्वेष नहीं करते।
१४. अवि साहिए दुवे मासे छप्पि मासे अदुवा अपिबित्ता। __रायोवरायं अपडिण्णे अन्नगिलायमेगया भुंजे॥
उन्होंने कभी-कभी दो मास से अधिक और छह मास तक भी पानी नहीं पिया। उनके मन में नींद लेने का संकल्प नहीं होता था। वे रात भर जागृत रहते थे। कभीकभी वे बासी भोजन भी करते थे।
१५.छद्रेण एगया भुंजे अदुवा अट्टमेण दसमेणं। वे कभी दो दिन, तीन दिन, चार दिन या पांच दिन के दुवालसमेण एगया भुंजे पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे॥ उपवास के बाद भोजन करते थे। उनकी दृष्टि तप
समाधि पर टिकी हुई थी। भोजन के प्रति उनके मन में
कोई संकल्प नहीं था। जागरिका
. १६.णिहंपिं जो पगामाए सेवइ भगवं उट्ठाए। - जम्गावती य अप्पाणं ईसिं साई या सी अपडिण्णे॥
भगवान शरीर सुख के लिए नींद नहीं लेते थे। जब नींद आने लगती तो वे खड़े होकर अपने आपको जागृत कर लेते थे। वे चिर जागरण के बाद शरीर धारण के लिए कभी-कभी थोड़ी नींद लेते थे। उनके मन में निद्रा सुख की आकांक्षा नहीं थी।
गीला
१७.गिम्हे अतिणिहा भवति हेमंते वा. ततो पव्वरत्ते - अवरत्ते वा पुवपडिलेहिय उवासयगतो, तत्थ 'णिहाविमोयणहेतु मुहुत्तागं चंकमिओ, णिहं पविणेत्ता पुणो अंतो पविस्स पडिमागतो ज्झाइवान्।
ग्रीष्म ऋतु और हेमंत ऋतु में नींद अधिक आती है। ऐसी स्थिति में वे पूर्वरात्रि में मध्यरात्रि के समय पूर्व प्रतिलेखित उपाश्रय में जाते और वहां नींद उड़ाने के लिए मुहूर्त्तभर चंक्रमण करते। जब नींद उड़ जाती तो पुनः ध्यान प्रतिमा में स्थित हो जाते।
गौतम
१८.गोयमादी! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं
आमंतेत्ता एवं वयासी-चिर संसिट्ठोसि मे गोयमा! चिरसंथुओसि मे गोयमा! चिरपरिचि-
ओसि मे गोयमा! चिरजुसिओसि मे गोयमा! चिराणुगओसि मे गोयमा! चिराणुवत्तीसि मे गोयमा! अणंतरं देवलोए अणंतरं माणुस्सए भवे। किं परं मरणा कायस्स भेदा इओ चुता दो वि तुल्ला एगट्ठा अविसेसमणाणत्ता भविस्सामो।
श्रमण भगवान महावीर ने गौतम को संबोधित कर कहा-गौतम! तुम चिरकाल से मेरे संसर्ग में रहे हो। गौतम! तुम चिर संस्तुत रहे हो। गौतम! तुम मुझसे चिरकाल में प्रीतिपरायण रहे हो। गौतम! तुम चिरकाल से मेरा अनुगमन करते रहे हो। गौतम! तुम चिरकाल से मेरा अनुवर्तन करते रहे हो, देवलोक और मनुष्य जन्म में भी। आगे और क्या, मरने के पश्चात् हम दोनों तुल्य, एकार्थक, अभिन्न और नानात्व से रहित होंगे।