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________________ आत्मा का दर्शन १०६ खण्ड-२ ४. एगं किर छम्मासं दो किर तेमासिए उवासीय। एक बार छह मास का उपवास किया। दो बार. तीन अड्ढाइज्जा दुवे, दो चेव दिवड्ढमासाइं॥ मास का उपवास किया। दो बार ढाई मास का उपवास किया। दो बार डेढ़ मास का उपवास किया। ५. भदं च महाभई पडिमं तत्तो असव्वओभई। ___ दो चत्तारि दसेव य दिवसे ठासी य अणुबद्धं॥ भद्र प्रतिमा (दो दिन की), महाभद्र प्रतिमा (चार दिन की), सर्वतोभद्र प्रतिमा (दस दिन की) एक-एक बार की। ६. गोयरमभिग्गहजुयं खमणं छम्मासियं च कासी य। पंचदिवसेहिं ऊणं अव्वहियो वच्छनयरीए॥ एक बार भगवान ने आहार प्राप्ति के लिए अभिग्रह किया। वह अभिग्रह पांच मास और पच्चीस दिन तक पूरा नहीं हुआ। भगवान विचलित नहीं हुए। आखिर वह कौशंबी नगरी में पूर्ण हुआ। आग ७. दस दोय किर महप्पा ठाइ मणी एगराइए पडिमे। अट्ठमभत्तेण जई एक्केक्कं चरमराईयं॥ भगवान ने बारह तेले (तीन दिन का उपवास) किए। प्रत्येक तेले के अंत में एकरात्रिकी भिक्षु प्रतिमा की आराधना की। ८. दो चेव य छट्ठ सए अउणातीसे उवासिया भगवं। न कयाइ निच्चभत्तं चउत्थभत्तं च से आसि॥ भगवान ने २२९ बेले (दो दिन का उपवास) किए। साधनाकाल में भगवान ने भोजन नित्य नहीं किया और न चतुर्थभक्त (एक दिन का उपवास) ही किया। ९. बारस वासे अहिए छठें भत्तं जहण्णयं आसि। सव्वं च तवोकम्मं अपाणयं आसि वीरस्स॥ साधिक बारह वर्षों की अवधि में भगवान का न्यूनतम तप बेला था। उनकी सारी तपस्या चौविहार परित्यागवाली (निर्जल) थी। १०.तिण्णि सए दिवसाणं भगवान ने साढ़े बारह वर्ष की अवधि में केवल ३४९ __ अउणावण्णं तु पारणाकालो। दिन आहार किया। उन्होंने उकडू निषद्या और खड़े-खड़े उक्कुडुयनिसेज्जाणं प्रतिमा करने का सैकड़ों बार प्रयोग किया। ठियपडिमाणं सए बहुए॥ ११.आयावई य गिम्हाणं अच्छइ उक्कुडुए अभिवाते। अदु जावइत्थं लूहेणं ओयण-मंथु-कुम्मासेणं॥ भगवान ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की आतापना लेते थे। उकडू आसन में लू के सामने मुंहकर बैठते। वे कभी-कभी रूखे कोदो, सत्तू और उड़द से जीवनयापन करते थे। १२. एयाणि तिण्णि पडिसेवे अळ मासे य जावए भगवं। अपिइत्थ' एगया भगवंअरमासं अदुवा मासं पि॥ भगवान ने इन तीनों (कोदो, सत्तू और उड़द) का सेवन कर आठ महीने तक जीवनयापन किया। कभी-कभी अर्धमास और एक मास तक पानी नहीं पीया। १. आवश्यक नियुक्तिकार का अभिमत आचारांग से भिन्न है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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