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________________ जीवन-प्रसंग प्रतिमा और ध्यान साधना १. इसिपब्भारगतो नाम ईसिं · ओणओ काओ। एगपोग्गल-निरुखविट्ठी' अणिमिसणयणो। अहा- पणिहितेहिं गत्तेहिं सव्विंदिएहिं गुत्तेहिं दोवि पादे साहटु वग्धारियपाणी एगराइयं महापडिमं ठितो। भगवान ध्यान करते समय शरीर को कुछ आगे की ओर झुकाकर रखते। वे पुद्गल अथवा शरीर के किसी एक केन्द्र पर दृष्टि टिकाते। उनके नेत्र अनिमिष रहते। शरीर सब अवयवों को यथास्थान नियोजित कर, सब इन्द्रियों को अपने-अपने गोलकों में स्थित कर, दोनों पांवों को परस्पर सटाकर, हाथों को घुटनों की ओर प्रलंब कर एकरात्रिकी महाप्रतिमा में स्थित हो जाते। तिर्यक् भित्ति पर दृष्टि टिकाकर भगवान कई प्रहर . तक ध्यान करते। अदु पोरिसिं तिरियं भित्ति चक्खुमासज्ज अंतसो साहा . २. अवि झाति से महावीरे भगवान उकडू आदि आसनों की मुद्रा में निश्चल आसणत्थे अकुक्कुए झाणं। होकर ध्यान करते। वे ऊंचे, नीचे और तिरछे लोक में उड्ढमहेतिरियं च . होने वाले पदार्थों को ध्येय बनाते थे। उनकी दृष्टि आत्म पेहमाणो समाहिमपडिण्णे॥' समाधि पर टिकी हुई थी। वे सकंल्प मुक्त थे। तपस्या और आतापना ३. नव किर चाउम्मासे भगवान ने नौ बार चार मास तक उपवास किया। छक्किर दोमासिए उवासीय। छह बार दो मास का उपवास किया। बारह बार एक मास बारस य मासिमाई का उपवास किया। बहत्तर बार पन्द्रह दिन का उपवास बावत्तरि अद्धमासाइं॥ किया। १. तत्य विजे अचित्तपोग्गला तेसु दिहिं निवेसेति। सचित्तेहिं दिट्ठी अप्पाइज्जति, जहा दुव्वाए। आवचू. १,पृ. ३०१ २. पुणतो तिरियं पुणं भित्तिं, सण्णित्ता दिट्ठी, को अत्यो? पुरतो संकुडा अंतो वित्थडा सा तिरियभित्तिसंठिता वुच्चति, सगडुछिसंठिता वा, जतिवि ओहिणा वा पासति तहावि सीसाणं उद्देसतो तहा करेति जेण निरंभति दिद्धिं,णय णिच्चकालमेव ओधीणाणोवओगो अस्थि,.......यदुक्तं भवति-पुरओ अंतो मझे यातीति पश्यति, तदेव तस्स ज्झाणं जं रिउवयोगो अणिमिसाए दिट्ठीए बदहिं अच्छीहिं, तं एवं बदअच्छी जुगंतरणिरिक्खणं दटुं। आचारांगचूर्णि, पृ. ३००, ३०१ ३. उड्ढं अहेयं तिरियंच, सव्वलोए झायति समितं, उड्ढलोए जे भावा, अहेवि तिरिएवि। जेहिं वा कम्मादाणेहिं उड्ढं गंमति एवं अहे तिरियं च, अहे संसारं संसारहेउं च कम्मविपागं च ज्झायति। एवं मोक्खं मोक्खहेऊ मोक्खसुहं च ज्झायति। पेच्छमाणो आयसगाहिं परसमाहिंच अहवा नाणादिसमाहिं। आचारांगचूर्णि, पृ. ३२४
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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