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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-२
६९. छिण्णम्मि संसयम्मि
जरा-मृत्यु से मुक्त महावीर की वाणी सुन पण्डित जिणेण जरामरणविप्पमुक्केणं। मेतार्य का संशय छिन्न हआ। उसने अपने ३०० शिष्यों सो समणो पव्वइतो
के साथ महावीर के पास प्रव्रज्या स्वीकार की। तिहिं तु सह खंडियसतेहिं॥
गणधर प्रभास ७०. ते पव्वइते सोतुं पभासो आगच्छई जिणसगासं। इन्द्रभूति आदि प्रव्रजित हो गए, यह सुनकर पण्डित वच्चामि णं वंदामि वंदित्ता पन्जुवासामि॥ प्रभास ने सोचा-मैं महावीर के पास जाऊं, उन्हें वन्दन
करूं और उनकी पर्युपासना करूं।
७१. आभट्ठोय जिणेणं जाति-जरा-मरणविप्पमुक्केणं। ___णामेण य गोत्तेण य सव्वण्णू सव्वदरिसी णं॥
जन्म, जरा और मृत्यु से मुक्त महावीर ने उसे आया देख नाम व गौत्र से सम्बोधित कर कहा- . ..
७२. किं मण्णे णेव्वाणं
अस्थि णत्थि त्ति संसयो तुज्झं।
प्रभास! निर्वाण है अथवा नहीं, तुम्हारे मन में यह संदेह है?
७३. पडिवज्ज मंडियो इव
विजोगमिह जीवकम्मजोगस्स। तमणातिणो वि कंचण
धातूण व णाणकिरियाहिं।
मंडितपुत्र की तरह तुम इस बात को स्वीकार करो कि जीव और कर्म का संयोग अनादि है, फिर भी . सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के द्वारा उसका अंत हो सकता है जैसे सोने और धातु के चिरकालिक संयोग का वियोग होता है।
७४. छिण्णम्मि संसयम्मि
जिणेण जरामरणविप्पमुक्केणं। सो समणो पव्वइतो
तिहिं तु सह खंडियसतेहिं॥
जरा और मृत्यु से मुक्त महावीर की वाणी सुन पण्डित प्रभास का संशय छिन्न हआ। उसने अपने तीन सौ शिष्यों के साथ भगवान महावीर के पास प्रव्रज्या स्वीकार की। .
गणधरावलि
७५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था।
से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ-समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था?
समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे इंदेभूई अणगारे गोयमे गोत्तेणं पंच समणसयाई वाएइ।
श्रमण भगवान महावीर के ९ गण और ११ गणधर थे।
भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कि श्रमण भगवान महावीर के ९ गण और ११ गणधर थे?
श्रमण भगवान महावीर के पहले गणधर गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति अनगार थे। वे ५०० श्रमणों को वाचना देते-पढ़ाते थे।
दूसरे गणधर गौतमगोत्रीय अग्निभूति अनगार थे। वे ५०० श्रमणों को वाचना देते-पढ़ाते थे।
मज्झिमे अग्गिभूई अणगारे गोयमे गोत्तेणं पंच समणसयाई वाएइ।