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उद्भव और विकास
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अ. २ : साधना और निष्पत्ति
वह महावीर को देख खजूर के तने से पीटने लगा।
खत्तिओ। सामि दळूण सिंदिकंदएण आहणामित्ति पधाइतो। एत्थंतरा सणंकुमारो एति। तेण धाडितो तासितो य, पियं च पुच्छति।
अकस्मात् सनत्कुमार वहां आया। उसने उसे प्रताड़ना दी। महावीर की वंदना की, महिमा की और कुशल पूछा।
११०. ततो गंदिग्गामं गतो। तत्थ गंदी नाम भगवतो पितुमित्तो। सो महेति।
___ महावीर नंदिग्राम में गए। वहां नन्दि नाम का व्यक्ति सिद्धार्थराज का मित्र था, उसने महावीर की वंदना की, महिमा की और कुशल पूछा।
१११. ततो मेंढियं एति।
महावीर मेंढियग्राम गए।
११२, ततो कोसैबिगतो।
मेंढियग्राम से कौशंबी गए।
महावीर पर तलवार का वार ११३. ततो सामी निम्गतो सुमंगला णाम गामो तहिं गतो। तत्थं सणंकुमारो एति वंदति पियं च पुच्छति।
महावीर कौशंबी से सुमंगला ग्राम गए। वहां सनत्कुमार ने वंदना की, महिमा की और कुशल पूछा। .
११४. ततो सामी पालयं नाम गामं गतो। तत्थ वाइलो . नाम वाणिययो जत्ताए पहावितो। सामीं पेच्छति। ..सो अमंगलं ति काऊण असिं गहाय पधातिओ।
महावीर पालक ग्राम में गए। वहां वाइल नाम का वणिक यात्रा के लिए जा रहा था। उसने महावीर को देखा। उनको अमंगल समझ तलवार ले उनके पीछे दौड़ा। किन्तु प्रहार सफल नहीं हुआ।
स्वातिदत्त के प्रश्न . ११५. ततो सामी चंपं नगरिं गतो। तत्थ सातिदत्तमाहणस्स अग्निहोत्तवसहिं उवगतो। तत्थ चाउम्मासं खमति। तत्थ पुण्णमह-माणिभदा दुवे जक्खा रत्तिं पज्जुवासंति। चत्तारि वि मासे रत्तिं रतिं पूयं करंति। ताहे सो माहणो चिंतेति-किं एस जाणति तो णं देवा महेंति? ताहे विन्नासणनिमित्तं पुच्छति
महावीर चंपा नगरी गए। स्वातिदत्त ब्राह्मण के अग्निहोत्र भवन में ठहरे। वहां वर्षावास किया। चातुर्मासिक तप किया।
उस भवन में पूर्णभद्र और माणिभद्र यक्ष रात्रि के समय महावीर की उपासना करते थे। उनकी उपासना का यह क्रम चार महीने तक चलता रहा।
स्वातिंदत्त ब्राह्मण ने सोचा-यह ऐसा क्या जानता है, जिससे देवता इसकी सेवा करता है। उसने विश्वास के लिए महावीर से पूछा
आत्मा क्या है? महावीर-जो मैं हूं वही आत्मा है। स्वातिदत्त-आत्मा कैसी है? महावीर-वह सूक्ष्म है।
को ह्यात्मा? भगवानाह-योहमित्याभिमन्यते। स कीदृक् ? सूक्ष्मोऽसौ।