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वर्ग - प्रथम ]
( २० )
[ निश्यावलिका सूत्रम्
एवं काले विसोगो जाओ । पुणरवि सयणआसणाईए पिइसंतिए दट्ठूण अधिई होई । तओ रायगिहाओ निग्गंतुं चंपं रायहाणि करेइ । एवं चंपाए कूणिओ राया रज्ज करेइ नियगभायपमुह सयणसंजोगओ । इह मिरयावलिया-सुयखन्धे कूणिक वक्तव्यता आदावुत्क्षिप्ता ।
इस पाठ का भाव ऊपर लिखा जा चुका है, उसकी सहायता करने वाले कालादि १० कुमार रथ- मूसल संग्राम में अनेक लोगों का साथ करने से नरक के योग्य कर्म एकत्र कर नरक में उत्पन्न हुए । इसलिए इस सूत्र का नाम निरयावलिका गुण निष्पन्न है । संग्राम का विषय निम्न प्रकार से जानना चाहिए ।
चम्पानगरी में कोणिक नाम वाला राजा राज्य करता था। वे दोनों भाई हल्ल और विल्ल नाम वाले पिता के दिए हुए सेचनक नाम वाले गन्ध हस्ती पर समारूढ़ होकर, दिव्य कुण्डल दिव्य वस्त्र, दिव्य हार से विभूषित तथा अपने अन्तःपुर के साथ गंगा नदी में विलास कर रहे थे । उन्हें देखकर पद्मावती नाम वाली देवी ने राजा कोणिक को हार और हस्ती पाने के लिए प्रेरित किया । तब राजा कोणिक ने विहल्ल कुमार को दोनों पदार्थ देने का आदेश दिया। वे राजा के भय से अपने मातामह (नाना) चेटक नाम वाले राजा के पास वैशाली नगरी में चले गए । कोणिक ने दूत भेज कर फिर आदेश दिया । चेटक राजा ने कहा तुल्य मातृक होने से उनको भी राज्य का भाग मिलना चाहिये । कोणिक ने इस बात को स्वीकार न किया । वह संग्राम के लिए उद्यत हो गया । कोणिक की प्राज्ञानुसार तीन-तीन हजार हस्ती, रथ और घोड़े लेकर, इतना ही नहीं प्रत्येक के साथ तीन-तीन करोड़ मनुष्य भी थे । इसी प्रकार कूणिक स्वयं भी तैयार हुआ। । सारी सेना में एकादश भाइयों की सेना ३३ हजार हस्ती, ३३ हजार रथ, ३३ हजार घोड़े और ३३ करोड़ मनुष्य गरूड़ व्यूह के संस्थान पर संस्थित की गई।
इस वृत्तान्त को जान कर राजा चेटक ने भो अष्टादश गण राजाओं को एकत्र किया, उन राजाओं की सेना और राजा चेटक की सेना में इतने ही हस्ती आदि का प्रमाण था । तत्पश्चात् युद्ध में संलग्न हुए राजा चेटक ने एक ही बार धनुषवाण छोड़ने की प्रतिज्ञा कर लो थी । उसका वाण अमोघ होता था । इसी क्रम से १० दिनों में कालादि १० कुमार मृत्यु को प्राप्त हो गए । एकादशवें दिन राजा चेटक को जीतने के लिए कोणिक ने अष्टम भक्त के साथ देवाराधन किया। तब शक ेन्द्र और चमरेन्द्र दोनों इन्द्र आगए। शक ने कहा- चेटक श्रावक है, अतः उसके ऊपर मैं प्रहार नहीं कर सकता। किन्तु आप की रक्षा अवश्य करूंगा । तब उसकी रक्षा के लिए वज्र के समान अभेद्य कवच निर्माण किया । चमर ने दो संग्राम विकुर्वण किए महाशिला कंटक और रथ मूशल । उनमें महाशिला कण्टक संग्राम में शत्रु के प्रति तृणादि पदार्थ भी महाशिला के समान काम करते थे । रथ- मूशल संग्राम में एक रथ मूशल से युक्त बिना घोड़े और सारथी के चारों ओर सेनाओं का क्षय करता हुआ भागता
था ।
उस रथ-मूसल संग्राम में काल कुमार मृत्यु को प्राप्त हुआ । उक्त विषय को वृत्तिका निम्न प्रकार से लिखते हैं ।