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________________ (१८) [ निश्यावलिका सूत्रम् कोणिक कुमार को राज्य देने का निश्चय कर हल्ल कुमार को सेचनक हस्ती दे दिया और विल्ल कुमार को देव का दिया हुआ हार दिया गया । वर्ग - प्रथम ] मंत्री अभयकुमार के दीक्षित होने पर सुनन्दा देवी ने क्षौम-युगल और कुण्डल-युगल हल्ल और विल्ल कुमार को दे दिये । तव बृहत् महोत्सव के साथ अभय कुमार और उनकी माता सुनन्दा देवी दीक्षित हो गए । राजा श्रेणिक की रानी चेलणा देवी के तीन पुत्र हुए - १. कोणिक, २ . हल्ल और ३. विहल्ल । अब कोणिक की उत्पत्ति के विषय में कहते हैं— काली महाकाली प्रमुख राजा श्रेणिक की रानियों से काल कुमार आदि बहुत से पुत्र थे। अभय कुमार के दीक्षित होने पर किसी अन्य समय कोणिक कुमार काल आदि दश कुमारों को आमन्त्रित कर कहने लगा - हे कुमारो ! राजा श्रेणिक के विघ्न के कारण हम राज्य का सुख प्राप्त नहीं कर सकते, अतः आओ हम पिता को कारागृह में डालकर राज्य के ११ भाग करें और राज्य के सुखों का अनुभव करें, उन दश कुमारों ने भाई की इस बात को स्वीकार कर लिया । तब कोणिक ने श्रेणिक को बांध कर कारागृह में डाल दिया। वहां पर कोणिक उसे अनेक प्रकार के कष्ट देने लगा वृत्तिकार ने प्राकृत में इस विषय में इस प्रकार लिखा है कि दोगुम्बुगदेवा इव कामभोग-परायणास्त्रयस्त्रिश या देवाः फुट्टमाणेहि मुइंगमन्थएहिं वरतरुणिसप्पिणिहिए बत्तीसपत्तनिबद्ध हि नाडरहि उवगिज्जमाना भोगभोमाई भुंजमाणा विहरति । हल्ल - विहल्लनामाणो कुणियस्स चिल्लणादेवी- अंग-जाया दो भायरा अन्नेऽवि अस्थि । अहुणा हारस्स उप्पत्ती भन्नइ - इत्थ सक्को सेणियस्स भगवंतं पर निच्चलभत्तिस्स पसं करेइ । तओ सेडुयस्स जीव देवो तब्भत्ति-रंजिओ सेणियस्स तुट्ठो सन्तो अट्ठारसबंक हारं देइ । दोन्निय वट्टगोलके देइ । सेणिएणं सो हारो चेलगाए दिन्नो पिय त्ति कांउं, वट्टदुगं सुनंदाए अभयमंति जगणीए । ताए रुट्ठाए कि अहं वेडरूत्रं त्ति काऊन अच्छोडिया भग्गा, तत्थ एगम्मि कुंडलजय एगम्मि वत्थ-जुयलं तुट्ठाए गहियाणि । अन्नया अभओ सामि पुच्छइ - " को अपच्छिमो रायरिसित्ति ?" सामिणा उद्दायिणो वारिओ, आओ परं वद्धमउडा न पव्वयंति । हे अभए रज्जं दिज्जमाणं न इच्छित्रं ति पच्छा सेणिओ चितेइ - "कोणिय स दिज्ज त्ति, हल्लस्य हरिथ दिन्नो, सेयणगो विहल्लस्स देवदिन्नो हारो अभएण वि पव्वयंतेण सुनंदाए खोमजु यलं कुंडलजुबलं च हल्ल-विहल्लाणं दिन्नाणि । महया विहवेण अभओ नियजणगीसमेओ पव्वइओ । सेणियस्स चलणादेवी - अंग-समुब्भूया तिन्नि पुत्ता कूणिओ हल- विहल्ला य । कूणियस्स उत्पत्ती एत्थेव भणिस्स । काली महाकाली पमुहदेवीणं अन्नासि तणया सेणियस्स बहवे पुत्ता काल
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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