SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ग-प्रथम ] (१६) [ निरयावलिका सूत्रम् का पुत्र “काल" नाम का कुमार था । वह भी सुकुमार और सुन्दर रूप वाला था। टीका-इस सूत्र में काली देवी और उसके पुत्र का वर्णन किया गया है । हस्तलिखित प्रतियों में पुत्र के विषय में “सुकुमाल-"सकमाल पाणीपाए जाव सुरूवे" इस प्रकार पाठ दिया गया है, महाराजा श्रेणिक की भार्या और कोणिक राजा की अपर माता काली नाम वालो देवी चम्पा नगरी में रहती थी। इस का पूर्ण वर्णन औपपातिक सूत्र से जानना चाहिए। उस सूत्र से एवं ज्ञाताधर्म-कथाङ्ग सूत्र से कुछ पद लेकर वृत्तिकार ने निम्न प्रकार से उस के विषय में वर्णन किया है ___ सा च काली “सेणियस्स रन्नो इट्ठा" वल्लभा कान्ता काम्यत्वात्, 'पिया' सदा प्रेमविषयत्वात, 'मणुना सुन्दरत्वात्, 'नामधिज्जा' प्रशस्तनामधेयवतीत्यर्थः नाम वा धार्य-हृदि धरणीयं यस्याः सा तथा 'वेसासिया' विश्वसनीयत्वात् 'सम्मया' तत्कृतकार्यस्य संमतत्वात्, ‘महुमतां' बहुशो बहुभ्यो वान्येभ्यः सकाशात् बहुमता बहुमान-प्राप्तं वा, 'अणुमया' प्रियकरणस्यापि पश्चान्मताऽनु पता 'भंडकरंउकसमाणा' आभरण-करण्डकसमाना उपादेयत्वात् सुरक्षितत्वाच्च । 'तेल्लकेला इव सुसंगोविया तैलकेला सौराष्ट्रप्रसिद्धो मण्मयस्तैलस्य भाजनविशेष, स च भङ्ग भयात् लोचनभयाच्च सुष्ठ संगोप्यते, एवं साऽपि संगोप्यते तथोचते । 'चेलापेडा इव सुसंपरिगहिया' वस्त्रमञ्ज षेवेत्यर्थः ‘सा काली देवी सेणिए ण रन्ना सद्धि विउलाई भोग भोगाइं भुंजमाणा विहरई'। कालनामा च तत्पुत्रः 'सोमाल पाणिपाए' इत्यादि प्रागुक्तवर्णकोपेतो वाच्यः, यावत् 'पासाइए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे' इति। ___इस पाठ का भाव यह है कि वह काली देवी महाराजा श्रेणिक. की वल्लभा, प्रिय विश्वसनीय सम्मत बहुमत आभरण करण्डक के समान, सुगन्धमय तेल के भाजन के समान, वस्त्रमञ्जूषा के समान अति प्रिय थी, अतः राजा श्रेणिक के साथ उसका परम स्नेह था और उसके हाथ, पांव बड़े ही सुकुमार थे। उस काली देवी का पुत्र काल नामा कुमार था जो सुकूमाल और सर्वाङ्ग पूर्ण (वा सुरूप) था। जिस प्रकार ज्ञाता-धर्म-कथाङ्ग सूत्र में मेघ कुमार का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार इसके विषय में जानना चाहिए। उत्थानिका अब सूत्रकार काली कुमार के विषय में कहते हैं : मूल तए णं से काले कुमारे अन्नया कयाइ तिहिं दन्तिहसस्सेहि तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहिं तिहिं मणुयकोडोहिं गरुलवूहे । एक्कारसमेणं खंडेणं कूणिएणं रण्णा सद्धि रहमुसल संगामं ओयाए । ॥१०॥ छाया-ततः णं सः कालः कुमारः अन्यदा कदाचित् त्रिभिः दंतीसहस्रः त्रिभिः रथसहस्रः, त्रिभिः अश्वसहस्रः, त्रिभिः मनुज कोटिभिः गरुड-व्यू हे एकादशेन खण्डेन कूणिकेन राजा साधं रथमूशलं संग्रामं उपयातः।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy