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________________ निरयाबलिका सूत्रम् ] (१५) [वर्ग-प्रथम तुलारोपितः पुरुषो यद्यर्धभारं तुलयति तदा स तन्मानप्राप्त उच्यते । प्रमाणं तु स्वांगुलेनाष्टोत्तरशतोच्छायिता, ततश्च मानोन्मानप्रमाणः प्रतिपूर्णानि अन्यूनानि सुजातानि सर्वाणि अङ्गानि-शिरः प्रभूतानि यस्मिस्तत् तथाविधं सुन्दरम् अङ्ग-शरीरं यस्या सा तथा । ___ इस का भाव यह है कि किसी जल-कुण्ड में पुरुष के बैठने पर यदि एक द्रोण मात्र प्रमाण जल बाहर निकल जाता है तब वह पुरुष द्रोणमान प्रमाण कहा जाता है। तुला में आरोपण किया हुआ पुरुष वदि अर्ध भाग के तुल्य होता है तब उसको उन्मान-प्राप्त कहते हैं। अपनी अंगुलों से १०८ अंगुल ऊंचा हो तो उसे प्रमाण-युक्त कहते हैं। वह देवो उक्त गुणों से पूर्ण थी। उसका मुख चन्द्रवत् सौम्याकार था। इतना ही नहीं वह सरूपा थी-शरद पूर्णिमा के चन्द्र सदृश उसका मुख-मण्डल था। रानी के कर्ण-कुण्डलों की आभा से कपोलों की छवि द्विगुणित हो रही थी, मानो शृगार रस स्वयं अपना रूप धारण कर मुख पर आ बैठा हो । वह महाराजा कूणिक की हृदय-बल्लभा थी तथा अपूर्व सुखों का अनुभव करती हुई विचर रही थी। इसका विशेष वर्णन औपपातिक सूत्र में देखें। उत्थानिका :-अब सूत्रकार काली देवी का वर्णन करते हुए कहते हैं। ___ मूल-तत्थ णं चंगाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा कूणियस्स रन्नो चुल्लमाउया काली नामं देवी होत्था, सोमाल जाव सुरूवा। तीसे णं कालीए देवीए पुत्ते काले नामं कुमारे होत्था, सोमाल नाम सुरूवे । ॥६॥ छाया-तत्र णं चम्पायां नगर्याम् श्रेणिकस्य राज्ञः भार्या कूणिकस्य राज्ञः लघु माता (चुलमाउया) काली नाम्नो देवी अभवत्, सुकुमाल यावत् सुरूया। तस्याः णं काल्याः देव्याः पुत्रः कालः नामा कुमारः अभवत्, सुकुमाल यावत् सुरूपः । ___पदार्थाम्वयः-तत्थ-उस, णं-वाक्यालङ्कार में, चंपाए नयरीए-चम्पा नगरी में, सेणियस्सश्रेणिक, रन्नो राजा श्रेणिक की, भज्जा-भार्या, कूणिपस्स - कोणिक, रन्नो--राजा की, चुल्लमाउया-लघु माता, कालो नामं-काली नाम वाली, देवी होत्था -देवी थी, सोमाल-सुकुमाल, जाव सुरूवा-यावत् सुरूपा थी, तोसे णं कालीए देवीए-उस काली देवो का, पुत्ते-पुत्र, काले नाम कुमारे होत्या-काल नाम वाला कुमार था। सोमाल जाव सुरूवे-सुकुमाल यावत् सुरूप था। ___ मूलार्थ-उस चम्पा नगरी में राजा श्रेणिक की भार्या कोणिक राजा की लघु माता काली नाम वाली देवी थी, जो सुकुमार और सुरूपवती थी। उस काली देवी
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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