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________________ वर्ग-प्रथम ] (१४) [निरयावलिका सूत्रम् । मलार्थ उस चम्पा नाम की नगरी में राजा श्रेणिक का पूत्र चेलना देवी का आत्मज कोणिक नाम का एक महान राजा था। टीका--इस सूत्र में संक्षेप से कणिक राजा का वर्णन किया गया है, जैसे कि उा चम्पा नगरी में राजा श्रेणिक का पुत्र और चेलना देवी का आत्मज कोणिक नाम का राजा राज कर था। इसका सम्पूर्ण बर्णन औपपातिक सूत्र में किया गया है। यह राजा महा हिमवान पर्वत के समान अन्य राजाओं की अपेक्षा से महान था। उस का राज्य निष्कण्टक था । उस राजा ने बहुत से राजाओं पर विजय प्राप्त की थी और अनेक शत्रुओं का मान मर्दन किया था तथा न्यायशील था, किन्तु उपके पुण्य के प्रभाव से राज्य में विघ्न, ज्वर, मरी, दुभिक्ष तथा संग्राम आदि का सर्वथा अभाव था। प्रजा प्रसन्नता-पूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थी। नगरी धन-धान्य से परिपूर्ण थी। चारों ओर . सर्व प्रकार से लक्ष्मी की वृद्धि ही रही थी। सर्वत्र लक्ष्मी का बोल-बाला था। नये से नये आविष्कारों का प्रादुर्भाव हो रहा था। राज्य में सर्वत्र शान्ति एवं उन्नति का साम्राज्य था। उत्थानिका—अब सूत्रकार राजा की रानी के विषय में कहते हैं मूल-तस्स णं कूगियस्स रन्नो पउमावई नाम देवी होत्था, सोमाल जाव विहरइ ॥ ८॥ छाया- तस्य णं कूणिकस्य राज्ञः पद्मावती नाम्नी देवी अभवत सुकुमाल यावत् विहरति । पदार्थान्वयः-णं - प्राग्वत्, तस्स-उस, कणियस्स रनो-राजा कोणिक की, पउमावईपद्मावती, नाम-नाम वाली, देवी-देवी (महारानी), होत्था थी। सोमाल-सुकुमार, जावयावत्, विहरइ-विचरती है। मूलार्थ- उस राजा कोगिक की पद्मावती नाम की देवी (महारानी) थी जो सुकुमार यावत् सुख भोगती हुई विचरती थी। टोका-इस सूत्र में रानी पद्मावती देवी का वर्णन किया गया है। राजा कोणिक की एक पदाबती नाम वाली रानी थी जिसके हस्त और पाद सुकोमल थे, वह पांचों इन्द्रियों से पूर्ण, शरीरलक्षणों व्यजनों और गुणों से युक्त थी। स्वस्तिक चक्रादि लक्षण होते हैं और मस्सा तिल का द व्यञ्जन होते हैं । वह स्त्रियोचित सभी गुणों से पूर्ण थी। मान और उन्मान से युक्त थी। इतना ही नहीं, उसका शरीर प्रतिपूर्ण था और वह सर्वाङ्ग सुन्दर थी। वृत्तिकार मान और उन्मान का वर्णन निम्न प्रकार से करते हैं तत्र मान-जलोणप्रमाणता कथं ? जलस्यातिभते कुण्डे पुरुषे निवेशिते यज्जलं निःसरति तहि द्रोणमान भवति, तदा स पुरुषो मानप्राप्त उच्यते, तथा उन्मानम् अर्धभार-प्रमाणता, कथं ?
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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