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निरयायलिका सूत्रम् ]
(१३)
[ वर्ग-प्रथम
निरयावलिका सूत्र के मोक्ष संप्राप्त श्रमण भगवन् महावार ने क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ?
इसके उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी के प्रति कहने लगे-हे जम्बू ! उस काल उस समय में इसी जम्बू द्वीप नाम के द्वीप में स्थित भारतवर्ष में चम्पा नाम की नगरी थी जो भवनादि से युक्त, भय से रहित, धन-धान्य से पूर्ण थी। इस नगरी के बाहर ईशान कोण में पूर्णभद्र नाम का एक उद्यान था, उस उद्यान में एक पूर्णभद्र यक्ष का आयतन था अर्थात् पूर्णभद्र यक्ष का मन्दिर था।
टोका-इस सूत्र में पूर्णभद्र आदि स्थानों का वर्णन किया गया है । आर्य जम्बू ने प्रश्न किया कि हे भगवन ! यदि श्रमण भगवान महावीर स्वामी जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं उन्होंने उपाङ्गों के प्रथम वर्ग निरयावलिका नामक सूत्र के दस अध्ययन प्रतिपादन किए हैं, तो हे भगवन ! प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है ?
उत्तर- "हे शिष्य ! हे जम्बू ! वह काल जो अवसर्पिणो काल का चतुर्थ विभाग रूप था उस समय में अर्थात् जिस समय श्री भगवान महावीर विद्यमान थे, इसी जम्बू द्वीप नामक द्वीप में स्थित भारतवर्ष में चम्पा नाम की नगरी थी जो ऋद्धि आदि गुणों से युक्त तथा परम रमणीय थी और उसके बाहर ईशान कोण में पूर्णभद्र नाम का उद्यान था उसमें एक पूर्णभद्र नामक यक्ष का मन्दिर था।
वह व्यन्तरायतन जनता की अभीष्ट इच्छाओं की पूर्ति करने में समर्थ था-इस का विस्तृत वर्णन औपपातिफ सूत्र से जानना चाहिये। चम्पा नाम की नगरी का वर्णन भी उसी सूत्र में विस्तार पूर्वक किया गया है, अतः जिज्ञासुओं को उक्त सूत्र का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए।
उत्थानिका-अब सूत्रकार चम्पा नगरी का वर्णन करते हुए कहते हैं
मूल-तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीएअत्तए कूणिए नामं राया होत्था, महया० ॥ ७ ॥
छाया-तत्र णं चंपायाम् नगर्याम् श्रेणिकस्य राज्ञः पुत्रः चेलनायाः देव्याः आत्मजः कूणिकः नाम राजा अभवत् । महान्।
पदार्थान्धयः-णं-वाक्यालङ्कार में, तत्थ-उस, चंपाए-चम्पा नाम वाली, नयरीएनगरी में, सेणियस्स रणो-राजा श्रेणिक का, पत्ते-पुत्र, चेल्लणाए-चेलना, देवीअत्तए-देवी का आत्मज, कूणिए णाम-कूणिक नाम का, महया-महान, राया होत्था-राजा था।