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________________ वर्ग-प्रथम ] (१२) [निरयावलिका सूत्रम् इस विषय का विस्तृत वर्णन इस अध्ययन में किया गया है जो ऐतिहासिक व्यक्तियों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। सूत्र कर्ता ने 'समणेणं भगवया जाव संपतेणं' आदि जो पद दिए हैं इनका भाव यह है कि यह कथन श्रमण भगवान महावीर स्वामी का है, न कि अन्य किसी द्वारा यह विषय प्रतिपादित किया गया है। इस घटना के भगवान महावीर के सन्मुख होने से उस समय की परिस्थितियों का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है, इसलिए इस विषय का ध्यानपूर्वक पठन करना चाहिए। उत्थानिका-अव सूत्रकार प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन के विषय का वर्णन करते हैं मूल-जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं उबंगाणं पढमस्स वग्गस्स निरयावलियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स निरयावलियाणं समजेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू । तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबु होवे दीवे भारहे वासे चंपा नाम नयरी होत्था, रिद्ध० । पुन्नभद्दे चेइए ॥६॥ छाया-यदि णं भवन्त श्रमणेन यावत् सम्प्राप्तेन उपाङ्गानां प्रथमस्य निरयावलिकाणां दश अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि, प्रथमस्य णं भवन्त ! अध्ययनस्य निरयावलिकाणां श्रमणेणं यावत् सम्प्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः एवं जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये इहैव जम्बूद्वीपे द्वोपे भारतवर्षे पम्पा नाम्नी नगरी अभूत् । ऋद्ध० पूर्णभद्रं चैत्यं ॥ ६ ॥ पदार्थान्वय:-णं-वाक्यालंकार अर्थ में, भंते-हे भदन्त, जइ-यदि, समणेणं-श्रमण, जाव-यावत्, सम्पत्तेणं-मोक्ष प्राप्त ने, उवंगाणं-उपाङ्गों के, पढमस्स वग्गस्स-प्रथम वर्ग के, निरयावलियाणं-निरयावलिका सूत्र के, समणेणं-श्रमण भगवान महावीर ने, जाव-जो यावत्, संपत्तेणं-मोक्ष को प्राप्त हो गए हैं, के अट्ठपण्णते-क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? एवं खलु जम्बू-इस प्रकार निश्चय से हे जम्बू, तेणं कालेणं तेणं. समएणं-उस काल और उस समय में, इहेव-इसी, जंबुद्दीवे दोवे-जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में, भारहे वासे- भारतवर्ष में, चंपा नाम नयरी होत्था-चम्पा नाम की नगरी थी, रिद्ध० -ऋद्धि यावत् धन-धान्य से युक्त थी, पुन भद्दे चेइए और उसके पूर्व और उत्तर दिशा के मध्य भाग में ईशान कोण में पूर्णभद्र नाम का चैत्य उद्यान था। ___ मूलार्थ-(आर्य जम्बू अपने गुरु गणधर गौतम से प्रश्न करते हैं) हे भगवन् ! यदि यावत् मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने उपाङ्गों के प्रथम वर्ग निरयावलिका सूत्र के दस अध्ययन प्रतिपादित किए हैं, तो हे भगवन् । पहले अध्ययन
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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