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________________ निरपालिका सूत्रम् ] ( ११ ) [ वर्ग - प्रथम संपत्ते - मोक्ष सम्प्राप्तने, उबगाण पढमस्स बस - उपाङ्गों के प्रथम वर्ग के, निरावलियाणंनिरयावलका सूत्र के दस अन्यणा पण्णत्ता - दश अध्ययन प्रतिपादित किए हैं, तं जहा -जैसे कि, काले काल कुमार का, सुकाले-सुकाल कुमार का, महाकाले - महाकाल कुमार का, कण्हे— कृष्ण कुमार का, सुपर कृष्ण कुमार का, तहा— तथा, महाकण्हे - महाकृष्ण कुमार का, य-और, वीरकण्हे बोद्धब्वे - वीर कृष्ण कुमार का जानना चाहिए, य- पुनः, तहेव - उसी प्रकार रामकहे- राम कृष्ण का, नवमे - नवमा, पिउ सेणकण्हे - पितृसेन कृष्ण कुमार का और दस मे - दशवें महासेण कण्हे - महासेन कृष्ण का, उ--वितर्क अर्थ में है । मूलार्थ—हे भदन्त ! यदि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी यावत् मोक्ष प्राप्त हुए ने उपाङ्गों के पांच वर्ग कथन किए हैं, जैसे कि निरयावलिका यावत् वृष्णिदशा तो हे भदन्त ! प्रथम वर्ग के उपाङ्ग निरयावलिका के श्रमण भगवान महावीर यावत् मोक्ष प्राप्त मे कितने अध्ययन प्रतिपादित किए हैं । इसके उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी कहने लगे इस प्रकार निश्चय ही हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यांवत् मोक्ष प्राप्त ने उपाङ्गों के प्रथम वर्ग निरयावलिका के दस अध्ययन प्रतिपादित किए हैं। जैसे कि - १ काल, २ सुकाल, ३ महाकाल, ४ कृष्ण, ५ सुकृष्ण, ६ महाकृष्ण, ७ वीरकृष्ण ८ रामकृष्ण, ९ पितृसेन कृष्ण और महासेन कृष्ण । प्रत्येक अध्ययन प्रत्येक कुमार के नाम पर कथन किया गया है । टीका --- इस सूत्र में प्रथम वर्ग के अध्ययनों के विषय का वर्णन किया गया है। यहां पर "वर्ग" शब्द अध्ययनों के समूह का नाम है । तो प्रथम वर्ग में दस अध्ययनों का विषय वर्णन किया गया है। इस विषय में वृत्तिकार निम्न प्रकार से लिखते हैं प्रथमवर्गोदशाध्ययनात्मकः प्रज्ञप्तः अध्ययनदशकमेवाह - 'काले सुकाले' इत्यादि । मातृनामभिस्तदपत्यानां - पत्राणां नामानि यथा काल्या अयमिति कालः कुमारः, एवं सुकाल्याः महाकाल्या: कृष्णायाः सकृष्णायाः मराकृष्णायाः वीरकृष्णायाः रामकृष्णायाः पितृसेनकृष्णाया: महासेनकृष्णाया: अयमित्येव पुत्रनाम वाच्यम् । इह काल्या अपत्यमित्याद्यर्थे प्रत्ययो नोत्पाद्यः, काल्यादिशब्देष्वपत्येऽर्थे एयण प्राप्तया कालसुकालादिनाम सिद्धेः एवं चाद्यः १ कालः, २ तदनुसुकालः ३ महाकाल:, ४ कृष्णः, ५ सुकृष्णः, ६. महाकृष्णः ७ वीरकृष्णः, ८ रामकृष्णः, ६ पितृसेन कृष्ण, १० महासेन कृष्णः, दशमः । इत्येवं दशाध्ययनानि निरयावलिकानाम के प्रथमवर्गे इति ॥ इस पाठ का भाव यह है कि महाराज श्रेणिक की काली आदि दस रानियां थीं । उनके काली कुमार आदि १० पुत्र हुए। प्रत्येक अध्ययन प्रत्येक पुत्र के नाम पर इस वर्ग में कथन किया गया है। १० कुमार नरक में गये थे, अतः इस वर्ग का नाम निरयावलिका है। किस प्रकार वे नरक में गए। ?
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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