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वर्ग-प्रथम]
[निरयावलिका सूत्रम्
उत्थानिका-अब सूत्रकार आगामी घटनाओं का वर्णन करते हैं
मूल-तए णं से भगवं जंबू जायसड्ढे जाव० पज्जुवास माणे एवं वयासि, उवंगाणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं के अठे पण्णते ?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं एवं उबंगाणं पंव वग्गा पण्णता, तं जहा-१. निरयावलियाओ, २. कप्पडिसियाओ, ३. पुफियाओ, ४. पुप्फचूलियाओ, वहिदसाओ ॥ ४ ॥
छाया-ततः सो भगवान् जम्बू जातश्रद्धः यावत् पर्युपासनां विदधान एवमवादीत् -उपाङ्गानां भदन्त ! श्रमणेन यावत् सम्प्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः ?
एवं खलु जम्बू ! श्रमणेन भगवता यावतसम्प्राप्तेन एवमुपाङ्गानां पञ्च वर्गा प्राप्ताः तद्यया१. निरयावलिका, २. कल्पावतंसिका, ३. पुष्पिका, ४. पुष्पचूलिका, ५. वृष्णिदशा ॥ ४ ॥
पदार्थान्वय.-तए-इसके अनन्तर, णं-वाक्यालङ्कारार्थ में, से-वह, भगवं-भगवान, जंबू -जम्बू नामक, जायसडढे-प्रश्न पूछने को श्रद्वा वाले, जाव -यावत्, पज्जुवासमाणेपर्यपासना करते हए, एवं वयासि -इस प्रकार बोले, उबंगाणं भंते-हे भगवन उपाङ्गों का, समणेणं-श्रमण भगवान महावीर ने, जाव-यावत, संपतेणं-मोक्ष को 'सम्प्राप्त हुए उन्होंने, के अट्ठ पण्णत्ते-क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ?
एवं खलु जंबू-इस प्रकार हे जम्बू ! समणेणं-श्रमण भगवान ने, भगवया-भगवान महावीर ने, जाव संपत्तेणं-यावत् मोक्ष को प्राप्त हुए उन्होंने, एवं उवंगाणं- इस प्रकार उपाङ्गों के, पंच-पांच, वग्गा-वर्ग, पण्णत्ता-कथन किये हैं, तं जहा-जैसे, १. निरयावलियाओ-निरयावलिका, २. कप्पडिसियाओ-कल्पावतंसिका, ३. पुफियाओ-पुष्पिका, ४. पुप्फचलियाओपुष्पचूलिका, ५. वहिदसाओ-वृष्णिदशा ।
मूलार्थ -उसके पश्चात् जिनके हृदय में श्रद्धा उत्पन्न हो चुकी है। यावत् वे जम्बू स्वामी भगवान् श्री सुधर्मा स्वामी की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार कहने लगेहे भगवन् ! उपांगों का श्रमण भगवान् महावीर ने जो कि अब मोक्ष में पधार चुके हैं क्या अर्थ कथन किया है ?
___ तब श्री सुधर्मा स्वामी जी इस प्रकार बोले-हे जम्बू ! उन श्रमण भगवान महावीर ने जो अब मोक्ष में पधार चुके हैं उपाङ्गों के पांच वर्ग इस प्रकार कहे