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________________ वर्ग - प्रथम ] ( ४ ) [ निरयावलिका सूत्रम् आर्य सुधर्मा स्वामी का आगमन मूल - - तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं अणगारे जाइसंपन्ने जहा केसी (जाव०) पंचहि अणगारसहि सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे जणव रायगिहे नयरे (जाव ) जहा पडिरूवं उग्गहं ओगिव्हित्ता संजमेणं (तवता अष्पाणं भावेमाणे ) जाव विहरइ । परिसा निगया। धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया ||२|| छाया - तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अंतेवासी आर्यसुधर्म : नाम अनगारः जातिसम्पन्नः यथा केशो यावत् पंचभिः अनगारशतैः सार्द्धं सह संपरिवृतः पूर्वानुपूर्व्या चरमाणे यस्मिन्नेव देशे राजगृहं नगरं यावत् यथाप्रतिरूपं अवग्रहं अवगृह्य संघन यावत् विहरति । परिषद् निर्गता, धर्मः कथितः । परिषत् प्रतिगता ॥ २॥ पदार्थान्वय - तेणं कालेणं - उस काल, तेणं समएणं - उस समय में, समणस्स श्रमण, भगवओ - भगवान महावीरस्स - महावीर का, अंतेवासी - शिष्य, अज्जसुहम्मे –आर्य सुधर्मा भामं—नाम वाला, अणगारे - अनगार, जाइसंपन्ने जाति-सम्पन्न, जहा - जैसे, केसी - केशी कुमार श्रमण थे, जाव - यावत्, पंर्चाह अणगारसहि सद्धि - पांच सौ अणगारों के साथ, संपरिवुडे - संपरिवृत अर्थात् संयुक्त, पुत्राणुपुत्रि चरे माणे - पूर्वानुपूर्वी अनुक्रम पूर्वक विचरते हुए, जेणेव - जहां पर रायगिहे नगरे - राजगृह नगर, जाव - पावत्, जहापण्डिरूवं यथा प्रतिरूप मुनिजन के यथोचित उगाई - निवास, ओगिहिता - आज्ञा लेकर, संजपेणं - संयम से, जाव - यावत् विहरइ - विचरते हैं। परिसा परिषद्, निग्गया-नगर से निकली, धम्मो कहिओ - श्री भगवान् ने धर्म - कथा कथन की । परिसा पडिगया - परिषद् नगर की ओर चली गई । 1 --- मूलार्थ - - उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के शिष्य आर्य सुधर्मा नाम वाले अनगार थे जो कि केशी कुमार श्रमण की भांति जाति सम्पन्न थे वे ५०० अनगारों के साथ,संपरिवृत होकर अनुक्रमता पूर्वक चलते हुए जहाँ पर राजगृह नगर था ( वहां पधारे) यावत् यथाप्रतिरूप मुनिजनों के उचित आवास की आज्ञा लेकर सयम और तप के द्वारा अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे. वन्दनादि के लिए परिषद् आई, श्री भगवान ने धर्म - कथा वर्णन की । परिषद् धर्म-कथा सुनकर नगर की ओर चली गई । टीका-उस समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी के शिष्य जाति सम्पन्न आर्य सुध
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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