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शास्त्र-प्रकाशन के सम्पन्न होने की शुभ वेला में हम जैन साध्वी श्री सन्तोष जी महाराज के विशेष कृतज्ञ हैं जिन्होंने हमें सम्पादन - कार्य में सतत सहायता प्रदान की है। प्रस्तुत शास्त्र की प्रेस कापी भी प्रापके कर-कमलों से ही तैयार हुई। आप बड़ी प्रतिभाशाली साध्वी हैं । आप लम्बे समय से गुरुणी साध्वी श्री स्वर्णकान्ता जी महाराज के चरणों में दीक्षित होकर स्वाध्याय, आत्मचिन्तन एवं ध्यान में लीन रहती हैं। आपने शास्त्र का प्रेस कापो प्रस्तुत कर हम पर जो उपकार किया है उसे हम कैसे भुला सकते हैं ? आपने इस शास्त्र की प्रेस कापी ही तैयार नहीं की, बल्कि हमें समय-समय पर परामर्श व दिशा-निर्देश भी दिया है । भविष्य में भी आप श्री के आशीर्वाद हमें मिलते रहेंगे, ऐसी आशा है।।
हम शास्त्र-प्रकाशन में आर्थिक सहयोग देने वाले दानियों को भी कैसे भूल सकते हैं जिन्होंने आचार्य श्री की भक्ति का प्रमाण देते हुए समिति को विपुल धन-राशि प्रदान की है, जिससे गुरुणी जी का स्वप्न साकार हो सका है।
साध्वी श्री स्मृति जी महाराज एम० ए० का यह प्रथम सम्पादन है। आप भी वधाई की पात्र हैं। डा० श्री धर्मचन्द जी जैन जिन्होंने सम्पादक-परिचय लिखकर हमारा उत्साह बढ़ाया है हम समिति की ओर से उनके प्रति सादर आभार व्यक्त करते हैं। हम उन समस्त प्रकाशकों, लेखकों के भी आभारी हैं, जिनकी पुस्तकों से हमें सहायता प्राप्त हुई है।
हम सम्पादक मण्डल की ओर से आचार्य-सम्राट् पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज की दीक्षा शताब्दी पर और समिति के रजत-जयंती वर्ष पर आचार्य श्री की यह कृति उपप्रतिनी साध्वी-रत्न श्री स्वर्ण कान्ता जी महाराज के कर-कमलों में सादर समर्पित करते हैं ।
श्री-संघ के दास रवीना बैन, पुरुषोत्तम जैन (प्रबन्ध सम्पादक)
जैन भवन, मालेर कोटला (संगरूर)
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(चौवन)