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________________ होते हुए भी हमने कार्य सतत जारी रखा। साध्वी श्री जी मुख्य सम्पादिका बनीं । चार सम्पादक हमारे अतिरिक्त श्री तिलकधर जी शास्त्री व साध्वी श्री स्मृति जी महाराज एम. ए., साध्वी श्री स्वर्णकान्ता जी महाराज की शिष्या साध्वी श्री सुधा जी महाराज, साध्वी श्री राजकुमारी जी महाराज, साध्वी श्री संतोष जी महाराज, साध्वी श्री वीरकान्ता जी महाराज का सहयोग हम कैसे भुला सकते है ? प्रेस कापी तैयार करने में उनका प्रमुख हाथ रहा है। साध्वी श्री सुधा जी महाराज तो हमारी दिशा-निर्देशिका रही हैं । प्रस्तुत संस्करण हमारी दृष्टि में आज तक छपे सभी संस्करणों से इस ग्रंथ का आकार बड़ा है। इसमें उत्थानिका, मूल पाठ, संस्कृत-छाया, पदार्थान्वय, मूलार्थ, हिन्दी टीका बड़ी सरल व स्पष्ट है। कई जगह आचार्य श्री ने अपनी विद्वत्ता का प्रमाण देते हुए कुछ स्पष्टीकरण दिये हैं जैसे कि रानी चेलना द्वारा मांसाहार व सेना की गिनती में "कोटि" शब्द के अर्थ चिन्तनीय हैं । हमारी दृष्टि में पहले किसी अनुवाद में ऐसा नहीं हुआ। धन्यवाद ___हम इस ग्रन्थ के सम्पादक होने के साथ-साथ प्रबन्ध सम्पादक भी हैं। इस नाते हम साध्वी श्री की ओर से गुरुदेव विद्वद्-रत्न श्री रत्न मुनि जी महाराज के प्रति श्रद्धान्वित कृतज्ञता प्रकट करते हैं। श्रमण-संघीय सलाहकार श्री ज्ञान मुनि जी महाराज तो हमारे मार्ग-दर्शक हैं, उन्होंने हमारे मन में समय-समय पर उठो शंकाओं के समाधान देकर हमें कृनार्थ किया है। वे तो हमारी कृतज्ञता को स्वीकार करेंगे हो। अनेक बार पदार्थान्वय में भी उनकी विद्वत्ता का लाभ हमें मिला। : भविष्य में भी उनका सहयोग इसी प्रकार मिलता रहे, यही शासनदेव से प्रार्थना है । साधु-रत्न युवाचार्य डा० श्री शिव मुनि जी महाराज, प्राचार्य श्री सुशील कुमार जी महागज, आचार्य श्री विजयेन्द्र दिन सूरीश्वर जी महाराज एवं साध्वी डा० श्री मुक्तिप्रभा जी महाराज आदि के आशीर्वादों का ही फल है कि यह दुस्तर कार्य सम्पन्न हो पाया है। इसके साथ ही साध्वी डा० श्री साधना जी व दर्शनाचार्य श्री चन्दना जी महाराज (राजगृही) आदि के आशीर्वादों के लिए भी आभारी हैं । आभार-प्रदर्शन आदरणीय बहिन डा० नलिनी बलवीर पटियाला विश्वविद्यालय में जैन धर्म पढ़ाती हैं। प्राकृत, संस्कृत की विदुषी हैं। उन्होंने हमारी प्रार्थना को स्वीकार कर दो शब्द लिख कर भेजे हैं। ये शब्द उनको विद्वत्ता के जीते-जागते प्रमाण हैं। हम उनका भी आभार मानते हैं। श्री तिलकधर जो शास्त्री के प्रति हम पुन: आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होने अपने स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए इस कार्य की पूर्णता एवं व्यवस्था में अपेक्षा से अधिक सहयोग दिया है। (त्रेपन)
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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