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है । इस अध्ययन में स्त्री की मनोवैज्ञानिक स्थिति का अच्छा चित्रण किया गया है।
पञ्चम अध्ययन में पूर्णभद्र देव व उसके पूर्व भवों क तथा छठे अध्ययन में मणिभद्र व उसके पूर्वभवों का संक्षिप्त वर्णन है ।
सातवें से दसवें अध्ययनों में दत्त, शिव, बल, अनादृत देवों के पूर्व भवों का वर्णन है ।
पुष्पचूला
इस उपांग में भी दस अध्ययन हैं - १. श्री देवी, २. ही देवी, ३. धृतिदेवी; ४. कीर्ति - देवी; ५. बुद्धि देवी, ६. लक्ष्मी देवी, ७. ईला देवी ८. सुरा देवी, ६. रस देवी और १०. गन्ध देवी ।
प्रथम अध्ययन में श्री देवी के सौधर्म कल्प देवलोक से आकर प्रभु महावीर को वन्दन करने, नाट्य विधि के प्रदर्शन का वर्णन है। भगवान ने उसका पूर्व भव बतलाते हुए बताया है कि "पूर्व भव में वह सुदर्शन सार्थवाह की भूता नामक कन्या थी जो योवन अवस्था में ही वृद्धा दिखाई देती थी । इसी कारण उसका विवाह कहीं नहीं हो सका । एक बार प्रभु पार्श्व धर्म प्रचार करते हुए, उस नगरी •में पधारे। भूता ने प्रभु का उपदेश सुना और वह साध्वी बन गई । वह पुष्प चूला आर्यिका की शिष्या बनी। भूता साध्वाचार के विपरीत शरीर का हार-शृङ्गार करने लगी। साधना की तरफ उसका कोई ध्यान नहीं था। उसकी गुरुणी ने भूता साध्वी को यह कार्य छोड़ कर आलोचना करने का परामर्श दिया। पर भूता साध्वी को यह अनुकूल परामर्श भी प्रतिकूल लगा । वह रात-दिन शरीर एवं स्थान की जल से शुद्धि करने में ही लगी रहती थी। साध्वाचार के विपरीत कार्य करने कारण वह मर कर सौधम देवलोक में पैदा हुई ।
शेष नौ देवियों का जीवन-वृत्त भी श्री देवी से बिल्कुल मिलता-जुलता है। सभी पूर्व भव में पुष्पचूला के पास साध्वियां बनीं। सभी को श्रृंगार आदि क्रियायें पसन्द थीं। सभी देवियां देव आयु क्षय कर महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध-बुद्ध मुक्त हो गई ।
वृष्णि दशा
इस उपांग के १२ अध्ययन हैं । नन्दी चूर्णि के अनुसार इस उपांग का नाम "अन्धकवृष्णि दशा" है । इस उपांग में वृष्णि वंशीय बारह राजकुमारों का वर्णन है जिनके नाम इस प्रकार हैं-
१. निषध कुमार, २. मातली कुमार, ३. वह कुमार, ४. वेह कुमार, ५. प्रगति कुमार, ६. ज्योति कुमार, ७ दशरथ कुमार, ८ दृढ़रथ कुमार, ६, महाधनु कुमार, १०. सप्त धनु कुमार, ११. दशधनु कुमार और १२. शतधनु कुमार । वृष्णिवंश, यदु वंश का दूसरा नाम है । प्रथम अध्ययन में बताया गया है कि प्राचीन काल में २२ वें तीर्थङ्कर भगवान श्री अरिष्टनेमि द्वारिका
[ उन्नचास ]