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________________ पद्मावती थी । वह रानी सुनग व सुकोमल थी। एक बार अर्ध रात्रि में उगने सिंह का स्वप्न देखा। स्वप्न-पाठकों से स्वप्न का फल जान कर वह बहुत प्रसन्न हुई। उसके यहां एक पुत्र-रत्न का जन्म हुआ जिसका नाम पद्म कुमार रखा गया। यौवन अवस्था में उसका आठ कन्याओं के साथ पाणि ग्रहण हुआ। एक बार श्रमण भगवान महावीर चम्पा नगरी में पधारे । प्रभु का उपदेश सुन कर वह मुनि बन गया। उत्कृष्टतम साधना के कारण उसका शरीर सूख गया। उसने विपुल गिरि पर समाधि-मरण प्राप्त किया। वह पद्म कुमार सुधर्म कल्प देवलोक में उत्पन्न हुआ। इस तरह का वर्णन शेष : राजकुमारों का भी है। इनके नाम इनको माताओं से मिलते थे। सभी विभिन्न देवलोकों की आयु पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगे। तृतीय वर्ग पुष्पिका इस वर्ग के दस अध्ययन हैं जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- .. (१) चन्द्र, (२) सूर्य, (३) शुक्र, (४) बहुपुत्रिका, (५) पूर्णभद्र, (६) मानभद्र, (७) शिव, (८) दत्त, (६) बल, (१०) अनादृत । प्रथम अध्ययन में चन्द्र देव के प्रभु महावीर के समवसरण में दर्शनार्थ आने का वर्णन है। यह चन्द्र अपनी देवऋद्धि प्रदर्शित करता है—नाटक करता है। गणधर गौतम चन्द्र के पूर्व भव का वर्णन पूछते हैं तो इस अध्ययन में चन्द्रदेव के पूर्व जन्म का वर्णन है। कैसे वह अंगति श्रावक के रूप में प्रभु पार्श्व के पास प्रवज्या ग्रहण करता है। दूसरे अध्ययन में सूर्य देव के दर्शन करने और नाट्य विधि दिखाने का वर्णन है। साथ में उसके पूर्वभव के रूप में बताया गया है कि वह श्रावस्ती नगरी का सुप्रतिष्ठ श्रावक था। उसने भी संयम ग्रहण किया। चन्द्र व सूर्य दोनों संयम की विराधना करते हैं। तीसरे अध्ययन में महाशुक्र ग्रह का वर्णन है । वह पूर्व जन्म में वाराणसी नगरी का सोमिल नाम का ब्राह्मण था। वह वेद-शास्त्रों में निष्णात था। एक बार भगवान श्री पार्श्वनाथ वहां पधारते हैं। वह भगवान श्री पार्श्वनाथ से उसी प्रकार के प्रश्न पूछता है जैसे भगवान महावीर के समय में सोमिल नाम के ब्राह्मण ने भगवती सूत्र १८ शतक के १० उद्देश्य में पूछे थे। शंकाओं का समाधान हो जाने पर वह श्रावक-धर्म ग्रहण कर लेता है । कुछ समय बीत जाने पर और महाव्रती साधुओं के दर्शन न होने कारण सोमिल फिर मिथ्यात्वी हो जाता है । उस रात्रि में उसके मन में एक संकल्प उत्पन्न होता है कि-"मैं वाराणसी का ब्राह्मण हूं। मैंने अनेको यज्ञ, हवन किये, विवाह किया। गृहस्थ के योग्य सभी कार्य किये। अब मुझे वाराणसी में आम, बिजौरा, बेल, कैथ, इमली और फूलों के बाग लगाने चाहिये । अपने विचारों को सोमिल ने क्रियान्वित किया। उसके बाग वाराणसी में प्रसिद्ध हो गये। . (छियालीस)
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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