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________________ नगरी में पाया । कोणिक क्रोध से भर गया। उसने दूसरा दूत भेजा। दूत ने कहा-"चेटक राजा ! मेरे स्वामी का आदेश है कि या तो आप तोनों वस्तुयें उन्हें लोटा दें, नहीं तो युद्ध के लिए तैयार हो जायें।" शरणागत की रक्षा करने वाले राजा चेटक ने कोणिक के द्वारा दो गई यद्ध की चुनौती को स्वीकार कर लिया। उसने अठारह मल्ल, काशो, कौशल गणराज्यों से विचार-विर्मश किया सभी ने शरणागत की रक्षा करने का समर्थन किया। वैशाली के मैदान में घमासान युद्ध हुआ । कोणिक के १० भाई व राजा चेटक समेत अनेक योद्धा इस युद्ध में मारे गये। इस प्रथम वर्ग के १० अध्ययनों में इन राजकुमारों के युद्ध में मर कर नरक में जाने का वर्णन है । इस युद्ध का वर्णन भगवती सूत्र में भी मिलता है । अनुत्तरौपपालिक सूत्र में वेहल्ल कुमार और वेहायस कुमार को चेलना का पुत्र बताया गया है। हल्ल को धारिणी का पुत्र निरयावलिका वृत्ति और भगवती वत्ति में हल्ल और बेहल्ल को चेलना का पुत्र कहा गया है। लगता है कोणिक ने हल्ल-वेहल्ल को राज्य में से कोई हिस्सा नहीं दिया था, क्योंकि जैन आगमों में राजा श्रेणिक के ३६ पुत्रों का वर्णन उपलब्ध होता है, जिनमें से २३ ने दीक्षा ग्रहण की थी। निरयावलिका में श्रेणिक के १० पुत्रों के नरक में जाने का वर्णन है। आगमों में राजा श्रेणिक की २३ रानियों का वर्णन है जो श्रेणिक को मृत्यु के पश्चात् साध्वी बन गई थीं। ___ वर्तमान श्रमण संघीय आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री ने वैशाली के विनाश का कारण बौद्ध साहित्य से भी उद्धृत किया है. परन्तु घटना - क्रम में काफी अन्तर है। बौद्ध साहित्य में कोणिक के दोहद की बात व पुत्र-प्रेम का तो वर्णन मिलता है। पर अजात शत्र कोणिक द्वारा अपने पिता को विभिन्न यातनायें देने का वर्णन नहीं है। बौद्ध साहित्य में अजात शत्रु का ऐसा बहुत कम वर्णन है। बौद्ध साहित्य में युद्ध का कारण रत्नराशि है। युद्ध कितने समय तक चला, इसके बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है। कल्पावतंसिका कल्प शब्द का प्रयोग सौधर्म से अच्युत तक बारह स्वर्ग लोकों के लिये किया जात है। देवों में उत्पन्न होने वाले जीवों का जिस ग्रन्थ में वर्णन है वही कल्पावंतसिका है। निरयावलिका सूत्र में जिन १० काल कुमार आदि का वर्णन है उन्हीं के सूत्रों (श्रेणिक के पौत्रों) का इस उपाङ्ग में वर्णन है । सभी उग्र तप द्वारा पण्डित-मरण-समाधि-मरण को प्राप्त होते हैं। महाव्रत धारण करने का फल इस उपाङ्ग का सार है । इन राज कुमारों के नाम हैं। (१) पद्म, (२) महापद्म, (३) भद्र, (४) सुभद्र; (५) पद्मभद्र, (६) पद्मसेन, (७) पद्मगुल्म, (८) नलिनी गुल्म, (६) आनन्द, (१०) नंदन । पहले अध्ययन में बतलाया गया है कि भगवान महावीर के समय चम्पा नगरी में कोणिक नाम का राजा राज्य करता था। उसकी विमाता काली का पुत्र काल था। काल की पत्नी ( पैतालीस )
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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