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________________ लिया था। तुम्हारे पिता ने तुम्हें कुरड़ी से उठा कर राज महलों में रखा । तुम्हारी अंगुली की पीड़ा को कम करने के लिये तुम्हारे पिता तुम्हारी अंगुली के खून एवं मवाद को चुस कर थूक देते थे तुम्हारे पालन-पोषण में उन्होंने कोई कमी नहीं रखी। उस देवगुरु तुल्य पिता को तुमने कारागार में डाल दिया है, बताओ फिर तुम्हारी राजश्री का मुझे क्या सुख हो सकता है ?" माता की बात का कोणिक पर बहुत प्रभाव पड़ा, वह उसी समय एक परसा लेकर पिता के बन्धन तोड़ने दौड़ा। राजा श्रेणिक ने समझा की यह दुष्ट मुझे कागगार में रख कर मन नहीं भरा । अब यह मुझे परसे से मारना चाहता है। मेरे लिये अब यही श्रेस्कर है कि मैं ताल- कूट विष को खा लूं । कम से कम अपमान की मृत्य से तो बचा रहूंगा ।" श्रेणिक ने ताल -पुट विष चाट कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी। कोणिक ने सम्मान सहित पिता का अग्नि संस्कार किया । पिता की मृत्यु का कोणिक को बहुत दुःख हुआ । वह पिता की मृत्यु का स्वयं को जिम्मेवार मान कर दुखी रहने लगा। राजगृही उसे काटने को दौड़ती थी । प्रत उसने अपनी राजधानी चम्पा को बनाने का निश्चय किया । श्रेणिक की मृत्यु के बाद राज्य को ११ भागों में बांटा गया। सभी भ्राता सुखपूर्वक रहने लगे । इसी नगरी में रानी चेलना का पुत्र बेहल्ल कुमार भी रहता था। राजा श्रेणिक ने अपने जीवन काल में उसे अठारह लड़ियों वाला एक बहुमूल्य हार और एक गन्धहस्ती प्रदान किया था । बेहल कुमार इस हार को पहन कर इस गन्धहस्ती पर विभिन्न मनोरंजन करता । यह हाथी गंगा नदी में उतर जाता । वेहल्ल कुमार की रानियों को सूंड से पकड़ कर पीठ पर बिठलाता, स्नान करवाता । इस तरह यह गन्धहस्ती अनेकों प्रकार की क्रीड़ायें करते हुए बेहल्ल कुमार एवं उसके परिजनों से क्रीड़ाये करता था । कोणिक की पत्नी पद्मावती को बेहल्ल कुमार का सुख अच्छा न लगा । वह सोचने लगी कि - "बेहल्ल कुमार साधारण राजकुमार होते हुए भी विपुल सुख भोग रहा है । मेरा पटरानी होना बेकार है, अगर मेरे पास यह दोनों वस्तुयें न हों। पद्मावती ने यह बात अपने पति कोणिक से कही। पहले तो कोणिक ने पत्नी की बात पर विशेष ध्यान न दिया। पर पत्नी के विशेष आग्रह के सामने वह झुक गया। उसने वेहल्ल कुमार से हाथो व अठारह लड़ियों वाले हार की मांग की । वेहल्ल कुमार ने कहा - " अगर आप मुझे आधा राज्य दे दें तो मैं आपको दोनों वस्तुएं दे सकता हूं।" कोणिक ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। वेहल्ल कुमार ने चम्पा नगरी छोड़ने का निर्णम किया । वह अपने परिवार समेत अपने नाना वैशाली गणराज्य प्रमुख चेटक की शरण में चला गया। कोण की जिद्द बढ़ती गई, राजा चेटक श्रावक था । कोणिक ने अपने नाना चेटक के यहाँ दूत भेजा। उसने अपने नाना चेटक से वेहल्ल कुमार, गंध-हस्ती व अठारह लड़ियों वाले हार की वापसी की बात कही । राजा चेटक ने शरणागत वेहल्ल कुमार का पक्ष लिया। चेटक का संदेश दूत लेकर चम्पा ( चौबालीस)
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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