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१०. प्रश्न- व्याकरण ११. विपाक
१२. दृष्टिवाद
२१६०००
१८४३२००० २४ पूर्वी की पद संख्या
६३१६०००
१२४०००००
आगमों का वर्गीकरण
जैसे कि पहले बताया गया है कि उपलब्ध आगमों को श्वेताम्बर - परम्परा ही मानती है दिगम्बर नहीं । श्वेताम्बर परम्परा में तीन सम्प्रदाय हैं - १. श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, २. श्वेताम्बर स्थानकवासी, ३. श्वेताम्बर तेरापन्थी ।
श्वेताम्बर मूर्तिपूजकों में श्रागमों की दो परम्परायें मिलती हैं, ८४ आगमों की परम्परा और ४५ आगमों की परम्परा । अधिकतर मुनिराज ४५ आगमों की परम्परा के पक्षधर हैं, शेष दोनों सम्प्रदायों को ३२ आगमों की परम्परा ही मान्य है ।
श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य आगम
मान्य ११ अंग - १. आचारांग, २. सूत्र कृतांग, ३. स्थानांग, ४. समवायाङ्ग, ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ६. ज्ञाता - धर्म - कथांग, ७. उपासक दशांग, ८. अन्तकृद्दशांग, ६ अनुत्तरौपपातिक दशा, १०. प्रश्न व्याकरण, ११. विपाक सूत्र, १२. दृष्टिवाद जो विलुप्त हो चुका है। १२ उपांग
१. औपपातिक, २. राजप्रश्नीय, ५. जीवाभिगम, ४. प्रज्ञापना, ५. सूर्य - प्रज्ञप्ति, ६. जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति, ७. चन्द्र प्रज्ञप्ति ४-१२ निरयावलिका, ६. कल्पावतंसिका, १०. पुष्पिका, ११. पुष्पचूला, १२. वृष्णिदशा ।
१०. प्रकीर्णक
१. चतु: शरण, २. आतुर प्रत्याख्यान, ३. भक्त-परिज्ञा, ४. संस्तार, ५. तंडुल वैचारिक, ६. चन्द्र वेधक, ७. देवेन्द्र स्तव, ८. गणिविद्या, ३. महाप्रत्याख्यान १०. वीरस्तव ।
६. छेद
१. आचार दशा, २. कल्प या बृहत्कल्प, ३. व्यवहार, ४. निशीथ, ५. महानिशीथ, ६. जीतकल्प ।
दो चूलिका सूत्र - १. नन्दी, २. अनुयोग द्वार ।
चार मूल सूत्र - १. उत्तराध्ययन, २. दशवेकालिक, ३. श्रावश्यक २, ४. पिण्ड निर्युक्त । १-२-३ इन्हें स्थानकवासी परम्परा स्वीकार नहीं करती ।
[ चालीस ]