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उत्कालिक भूत - १. दशवेकालिक, २. कल्पकल्प, ३. चुल्ल कल्पश्रुत, ४. महाकल्प श्रुत, ५. औपपातिक, ६. राजप्रश्नीय, ७ जीवाभिगम, ८ प्रज्ञापना, ६. महाप्रज्ञापना, १०. प्रमादाप्रमाद, ११. नन्दी, १२. अनुयोग द्वार, १३. देवेन्द्र स्तव, १४. तन्दुल वैचारिक, १५. चन्द्र विद्या, १६. सूर्य प्रज्ञप्ति, १७. पोरुषी मण्डल, १८. मण्डल प्रवेश, १६. विद्याचरण निश्चय, २०, गणि- विद्या, २१. ध्यान-विभक्ति, २२. मरण- विभक्ति, २३. आत्म-विशुद्धि, २४. वीतरागश्रुत, २५. संलेखना - श्रुत, २६. विहार-कल्प, २७, चरण-विधि, २८ आतुर प्रत्याख्यान, २६. महाप्रत्याख्यान |
२. जिस श्रुत का रात्रि व दिन के प्रथम व अन्तिम प्रहर में स्वाध्याय किया जाता है वहा श्रुत है जो कालिक से भिन्न काल में पढ़ा जाए वह उत्कालिक श्रुत है ।
कालिक धुत - १. उत्तराध्ययन, २. दशाश्रु त-स्कन्ध, ३. कल्पबृहल्कल्प, ४. व्यवहार, ५. निशीथ, ६. महानिशीध ७ अभिभाषित, ८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, ५. दीप सागर प्रज्ञप्ति, १०. चन्द्र प्रज्ञप्ति, ११. क्षुद्रिका विमान प्रविभक्ति, १२. महल्लिका विमान प्रविभक्ति, १३. अंग चूलिका १४. वर्ग चूलिका, १५. विवाह चूलिका, १६. अरुणोपपात, १७. वरुणोपपात, १८. गरुडोपयात १६, धरणोपपात २० वैश्रमणोपपात २१. वेलन्धरोपपात, २२. देवेन्द्रोपपात, २३. उत्थान - श्रुत, २४: समुत्थान श्रुत, २५ नाग परिज्ञापनिका, २६. निरयावलिका, २७. कल्पिका, २८. कल्पावर्तसिका, २६. पुष्पिता, ३० पुण्पचूलिका, ३१. वृष्णिदशा ।
इस विस्तृत सूची में उल्लिखित काफी आगम, कालिक, उत्कालिक ग्रन्थ अनुपलब्ध है । दृष्टिवाद तो पूरी तरह अनुपलब्ध है । नन्दी सूत्र में द्वादशांगी के विषय एवं आकार की विस्तृत चर्चा है। प्राचीन काल में द्वादश अङ्गों का श्वेताम्बर व दिगम्बर परम्परा में इस प्रकार का पद
प्राकार माना जाता था
१. आचारांग
२. सूत्र कृतांग
३. स्थानांग
४. समयावयांक
५. भगवती सूत्र
६. ज्ञाता धर्म कथांग
७. उपासक दर्शाग
च. अन्तकृद्दशांग
६. अनुत्तरोपपातिक
श्वेताम्बर पद
१८०००
३६०००
७२०००
१४४०००
२२२०००
५७६०००
११५२०००
२३०४०००
४६०२०००
(उनतालीस )
दिगम्बर पद
१८०००
३६०००
४२०००
१६४०००
२२२०००
५५६०००
११७००००
२३२२०००
६२४४०००