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सिद्ध प्राकृत
अग्रायणीय पज्जोयकप्प
अज्ञात धम्म पण्णत्ति -
प्रात्म-प्रवाद वक्क शुद्धि
सत्य-प्रवाद दशवकालिक का द्वितीय अध्ययन
प्रत्याख्यान प्रवाद परीसह अज्झयण
कर्म-प्रवाद पंच कप्प
अज्ञात दशाश्रुत, कल्प, व्यवहार
प्रत्याख्यान प्रवाद १४. महाकप्प
प्रज्ञात निशीथ
प्रत्याख्यान प्रवाद नयचक्र
ज्ञान-प्रवाद सयग
अज्ञात . पंचसंग्रह
अज्ञात सत्तरिया (कर्मग्रन्थ)
कर्म प्रवाद २०. महाकर्म प्रकृति प्राकृत
कर्म प्रवाद कषाय प्राभूत
अग्रायणीय २२. जीव समास
अज्ञात यह माना जाता है कि चौदहवां पूर्व दृष्टिवाद १२ अंग का भाग था । आगम-साहित्य
वर्तमान में जो आगम साहित्य उपलब्ध है, कुछ नन्दी सूत्र में वणित समस्त आगम साहित उस रूप में उपलब्ध नहीं होता जैसा किनन्दी सूत्र व अन्य ग्रन्थों में वर्णित है । जैन ग्रन्थों का वर्तमान संस्करण गणधरों द्वारा व उनके शिष्यों द्वारा संकलित है । जिसे गणि-पिटक भी कहते हैं । जैन परि भाषा में तीर्थङ्कर, गणधर तथाश्रत केवली प्रणीत शास्त्रों को आगम कहते हैं । जिस ज्ञान का मूल स्रोत तीर्थङ्कर भगवान हैं, आचार्य-परम्परा के अनुसार जो श्रुत-शान आया है अथवा आ रहा है वह आगम अथवा आप्त वचन कहलाता है ।
श्री नन्दी सूत्र में सम्यक् श्रुत के अन्तर्गत प्रागमों की गणना इस प्रकार की गई है
१२ गणिपिटक-(१) आचारोग, (२) सूत्र कृतांग, (३) स्थानांग (४) समवायाङ्ग (५) व्याख्या - प्रज्ञप्ति, (६) ज्ञाता-धर्म कथांग, (७) उपासकदशांग, () अन्तकृद्दशांग, (६ अनुत्तरोपपातिक दशांग, (१०) प्रश्न व्याकरण, (११) विपाक सूत्र, (१२) दृष्टिवाद ।
आवश्यक व्यतिरिक्त श्रुत दो प्रकार का है-१. कालिक और २. उत्कालिक ।
(अठत्तीस)