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४. अस्तिनास्ति प्रवाद साठ लाख पद धर्मास्तिकाय आदि वस्तुएं स्व-रूप से हैं पर-रूप
से नहीं। इसमें स्यादवाद के सिद्धांत कार्भी विस्तृत
विवेचन था। ५. ज्ञान प्रवाद एक करोड़ पद मति आदि पांच ज्ञानों का स्वरूप भेद प्रभेद ६. सत्य-प्रवाद एक करोड़ ६ पद सत्य, संयम और प्रतिपक्ष में असत्य का निरूपण । ७. आत्म प्रवाद छब्बीस करोड़ विविध नयों की अपेक्षा से जीवन का स्वरूप ८. कर्म प्रवाद या एक करोड़ कर्मों का स्वरूप, भेद प्रभेद आदि
समय प्रवाद अस्सी लाख
प्रत्याख्यानपद चौरासी लाख व्रत नियम आदि का स्वरूप १०. विद्यानु प्रवाद . एक करोड़ दस लाख विविध प्रकार की आध्यात्मिक सिद्धियां और
उनके साधन की प्रक्रिया ११. अवन्ध्य . छब्बीस करोड़ ज्ञान, तप संयम आदि और शुभ कर्मों एवं अशुभ या कल्याण
कर्मों का फल १२. प्राणायु एक करोड़ इन्द्रियों, श्वासोछ्वास, मन प्राणों और आयुष्य
छप्पन लाख आदि का वर्णन १३. क्रिया विशाल नौ करोड़ का यिक, वाचिक आदि शुभ अशुभ क्रियाएं १४. लोक बिन्दुसार वारह करोड़ इस में लब्धियों का स्वरूप आदि का विवेचन ।
पचास लाख श्वेताम्बर व दिगम्बर ग्रंथों में पद संख्या लगभग एक समान है।
पूर्वाश्रित साहित्य पूर्व साहित्य लुप्त होने के बावजूद ऐसी मान्यता है कि पूर्वो के कुछ अंशों से कुछ ग्रंथों का निर्माण हुआ। ऐसे साहित्य को नियू हित (णिज्जूहिय) कहा जाता है। डा० इन्द्र चन्द्र शास्त्री ने श्री उपासक दशाङ्ग सूत्र के पृष्ठ १० पर इस साहित्य की कुछ सूची प्रस्तुत की है।
पाठकों की जानकारी के लिये इसका वर्णन करना जरूरी हैप्रन्थ का नाम
पूर्व का नाम उपसर्गहर स्तोत्र
अज्ञात ओह णिज्जुत्ति (ओघ नियुक्ति) |
प्रत्याख्यान प्रवाद कम्म पयडी
कर्म-प्रवाद (कर्म-प्रकृति) प्रतिष्ठा-कल्प
विद्यानुप्रवाद स्थापना-कल्प
अज्ञात
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..... (संतीस)