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________________ दिगम्बर मान्यता के अनुसार दशपूर्व के ज्ञाता घर सेन आचार्य थे जो कि निर्वाण सं. २४५ में स्वर्ग सिधारे। दोनों परम्पराओं में अंतिम श्रुत केवली भद्रबाहु स्वामी थे। इनमें कुछ ही वर्षों का अन्तर है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार भद्रबाहु के बाद दस पूर्वधरों की परम्परा १४३ वर्षों तक रही । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार यह परम्परा ४१४ वर्षों तक चलती रही । आर्य वज्र के पश्चात् आर्य रक्षित हुए वे साढ़े εपूर्वी के ज्ञाता थे। इनके शिष्य दुर्वलिका पुष्यमित्र थे जो पूर्वो के ज्ञाता थे। पर वे अपने जीवन काल में ही हवें पूर्व का ज्ञान भूल गये । वीर निर्वाण के अनन्तर १० वर्षों तक सभी पूर्व लुप्त हो गये । दिगम्बर परम्परा के अनुसार पूर्वी के लुप्त होने का समय वी. नि. ६८३ है । दिगम्बर परम्परा षट खण्ड आगम और कषाय प्राभृत ग्रन्थों का आधार पूर्वी को मानती है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार पूर्वी के ज्ञाता गणधर सुधर्मा थे, उनसे २२० वर्ष पश्चात ११ अंग शास्त्रों का ज्ञान भी लुप्त हो गया। अंतिम अङ्ग शास्त्रों के ज्ञाता के कंसाचार्य माने जाते । मात्र आचारांग के ज्ञाता लोहिताचार्य थे जो ११८ वर्ष वाद हुए। इस प्रकार ६२+१०० + १८३+२२०+११८=६८३ अर्थात् वीर निर्वाण की सातवीं शताब्दी तक सारा आगम साहित्य लुप्त हो गया । उस समय मात्र दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग के कुछ अंश आचार्य धरसेन को स्मरण थे । उन्होंने प्रथम शताब्दो में गिरनार पर्वत को चन्द्रगिरि गुफा में इन्हें लिपिबद्ध किया । उन्होंने इस काम में अपने दो विद्वान शिष्यों पुष्पदेव और भूतवृलि की सहायता ली। उन्होंने जिस विशाल ग्रंथ का सम्पादन किया उसका नाम महाबन्ध है जिसे षट खण्डागम भी कहते हैं । इसके अतिरिक्त दिगम्बर परम्परा तत्वार्थ सूत्र, कषाय पाहुड़, गोम्मटसार, प्रवचनसार, नियमसार, वासुनंदी श्रावकाचार तिलोयपणत्ति आदि ग्रंथों का आधार प्राचीन आगमों को मानती है । दिगम्बर सम्प्रदाय के प्रसिद्ध आचार्यों में उमास्वाती, अकलंक, विद्यानंदी कुन्दकुन्द सुमन्तभद्र, और वसुनन्दी के नाम उल्लेखनीय है । चौदह पूर्वो का परिचय भगवान महावीर के समय में अङ्ग और उपाङ्ग साहित्य के अतिरिक्त पूर्व साहित्य भी विद्यमान था जिसका विस्तृत वर्णन नंदी सूत्र में उपलब्ध है। वर्तमान में इस अनुपलब्ध साहित्य का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है । क्रमांक नाम पूर्व पद संख्या १. २. ३. उत्पाद अग्रायणीय वीर्य प्रवाद एक करोड़ पद छियानवे लाख पद सत्तर लाख पद विषय द्रव्य और पर्यायों की उत्पत्ति सब द्रव्यों और जीवों की पर्यायों का परिमाण । सुकर्म और अकर्म जीव तथ। पुद्गलों की शक्ति | [ छत्तीस ]
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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