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________________ माथुरी वाचना का वर्णन आचार्य मलयगिरि द्वारा लिखित नन्दी सूत्र टीका, ज्योतिष कण्ड टीका. भद्रेश्वर कथावली, हेमचन्द्र के योग-शास्त्र में उपलब्ध होता है। मान्यता है कि उस समय कालिक श्रुत और अवशिष्ट पूर्व श्रुत को संगठित किया गया । वल्लभो वाचना इस वाचना का समय वीर निर्वाण सं० ८३० के लगभग है। जिस समय मथुरा में आचार्य स्कन्द के सान्निध्य में वाचना हो रही थी, उसी समय सौराष्ट्र (गुजरात) के वल्लभी नगर में आचार्य नागार्जुन के सान्निध्य में श्रमण संघ एकत्रित हुआ । यद्यपि लिखने की परिपाटी श्रार्य स्कदिल के समय से आरम्भ हो गई थी, परन्तु उस परम्परा को सर्वाधिक प्रोत्साहन देवद्विगणि क्षमा श्रमण के समय मिला। इस प्रकार आगमों को स्थिररूप आचार्य देवर्द्धिगण के समय मिल सका। जैन श्रमण संघ ऐसे युग-प्रधान आचार्य का युग-युगान्तरों तक ऋणी रहेगा। इसी वाचना का महत्वपूर्ण अङ्ग था नन्दी सूत्र में आगमों का वर्गीकरण । इस आगम-वाचना का एक प्रयत्न कलिंग नरेश खारवेल ३ ई. पू. के समय खण्डगिरि गुफा में किया गया, जिसका उल्लेख राजा खारवेल के विस्तृत शिला लेख में उपलब्ध होता है । परन्तु इस वाचना का प्रारूप क्या था ? इसमें वहां विराजित श्रमणों को जो जो पाठ याद थे वह सुनाये । उनका संकलन किया गया। इस वाचना के वाचक आचार्य नागार्जुन थे । माथुरी व वल्लभी वाचना प्रायः एक ही समय में हुई पर दोनों आचार्यों के परस्पर मिलन का वर्णन नहीं मिलता। वैसे दोनों वाचनाओं का बहुत महत्त्व है क्योंकि ग्राज भी अनेक पाठ-भेद आगमों में मिलते हैं तो वहां टीकाकार नागार्जुनीय वाचना का उल्लेख अवश्य करते हैं वल्लभी वाचना में प्रकरण ग्रन्थों को श्रुत ज्ञान का स्थान मिल गया । वेद्धगणी वाचना (वी. नि. ६८०) श्वेताम्बर जैन परम्परा में इस वाचना का अपना महत्वपूर्ण स्थान है वीर वि. सं. ६८० या में वल्लभी में ही आचार्य देवद्विगणि के सान्निध्य में विराट् श्रमण संघ का सम्मेलन हुआ । 1. इस सम्मेलन में उपलब्ध सभी वाचनाओं का अध्ययन किया गया। आचार्य देवगण के नेतृत्व में सर्वप्रथम जैन ग्रंथों को भोज - पत्रों पर लिखने का निर्णय किया गया। क्योंकि उस समय अधिकतर धार्मिक ग्रंथ श्रुत- परम्परा द्वारा ही सुरक्षित होते थे। इस सम्मेलन में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय हुए। जहां-जहां "पाठान्तर" भेद थे, उन्हें चूर्णि साहित्य में संग्रहीत किया गया कुछ प्रकीर्ण ग्रन्थों को ज्यों की त्यों मान्यता प्रदान की गई । माथुरी एवं नागार्जुनी वाचनाओं का समन्वय किया गया था, किन्तु उसका विशेष वर्णन • उपलब्ध नहीं होता । दिगम्बर मान्यता यहां हम दिगम्बर मान्यता की वह बात भी कहना चाहते हैं जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है । [ पैंतीस ]
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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