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सबका सम्पादन कर ग्यारह अंग सम्पूर्ण कर दिये गये। परन्तु बारहवां दृष्टिवाद नामक विशाल अंग किसी को याद न था। उस समय आर्य आचार्य भद्रबाहु ही १४ पूर्वो के ज्ञाता थे जो नेपाल में महा'प्राण नामक साधना कर रहे थे। श्री-संघ ने श्रुत-रक्षा के लिये ५०० मुनियों का एक संघ आचार्य स्थूलिभद्र के नेतृत्व में नेपाल भेजा। भद्र बाहु जी के ध्यान-साधना में लीन रहने के कारण बहुत से साधु स्थूलिभद्र को छोड़कर वहां से वापिस मा गये। किन्तु स्थूलिभद्र अपनी धुन के पक्के थे, अतः उन्होंने अपने विनय भाव एवं लगन से १० पूर्वो का ज्ञान उनसे प्राप्त कर लिया। ४ पूर्वो का ज्ञान उन्हें मूल रूप में ही मिला अर्थ रूप में नहीं।
पाटलीपुत्र वाचना का विस्तृत वर्णन (तित्थगली, पट्टण्णय), आवश्य चूर्णी, परिशिष्ट पर्व आदि में मिलता है।
सूत्रार्थ के सम्बन्ध में कहा जाता है कि पहले तो भद्रबाहु जी ने वाचना देना अस्वीकार कर दिया। तब स्थूलिभद्र जी ने कहा-“हे स्वामी ! यह श्री-संघ की आज्ञा है।
श्री संघ की आज्ञा सन्मान करते हुए उन्होंने वाचना देनी प्रारम्भ कर दी। जब पूर्वो का ज्ञान पूरा हो गया तो स्थूलिभद्र ने पूछा-"भंते ! एक प्रश्न पूछना चाहता हूं कि अब तक मैंने कितना ज्ञान प्राप्त कर सिया है और कितना शेष है ?
भद्रबाहु ने कहा-"अभी तक तुम सरसों के दाने जितना सीख पाए हो मेरू जितना शेष है।"
तब स्थलिभद्र ने कहा "भगवन् ! मैं अध्ययन से थका नहीं हूं, पर आयुष्य कर्म के कारण सोचता हूं कि इस जन्म में यह ज्ञान में पूर्ण रूप से कैसे सीख पाऊंगा।
स्थूलिभद्र की बात सुन कर भद्रबाहु ने कहा है-"वत्स ! चिन्ता की कोई बात नहीं। मेरा ध्यान पूरा हो गया है, तुम बुद्धिमान हो, मैं दिन रात तुम्हें दृष्टिबाद की वाचना दूंगा।
इस प्रकार जब १० पूर्व सम्पूर्ण हो गये। तब एक दिन स्थूलिभद्र ११वा पूर्व एकान्त में याद कर रहे थे। उसी समय स्थूलिभद्र की सात सांसारिक बहिनें साध्वी रूप में उनके दर्शनार्थ व वन्दन करने वहीं आ गई।
सर्व प्रथम उन्होंने भद्रबाहु को प्रणाम किया फिर अपने भ्राता स्थूलिभद्र के बारे में पूछा। भद्रबाहु ने स्थूलिभद्र को गुफा बता दी। उस समय स्थलिभद्र इस पूर्व में वणित यंत्र - विद्या का परीक्षण कर रहे थे। जब वे अंदर गई तो उन्होंने स्थूलिभद्र की जगह एक शेर को बैठे देखा। सातों बहिनें भयभीत हुई और वापिस आकर भद्रबाह जी को बताया- "हे गुरुदेव ! वहां हमारा माई स्थूलिभद्र नहीं है, वहाँ तो शेर बैठा है।'' - भद्रबाहु ने जब यह सुना, तो उनके मन को ठेस लगी। उन्होंने साध्वियों से कहा यह शेर ही तुम्हारा भाई स्थूलिभद्र है जो यंत्र-विद्या का परीक्षण कर रहा है । साध्वियां फिर उसी स्थान पर पहुंची जहां उनका भाई बैठा था।
[ तेंतीस).