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निरयावलिका)
(३७२)
। वर्ग-पंचम
दिवसेसु उद्दिस्संति, तत्थ चउस वग्गेसु दस दस उद्देसगा, पचमवग्गे बारस उद्देसगा ॥१५॥
॥ निरयावलियांसुत्तं समत्तं ॥
छाया-निरयावलिकोपाङ्गे खल एकः श्रुतस्कन्धः, पञ्च वर्गाः, पञ्चसु दिवसेसु उद्दिश्यन्ते, तन चतुषु वर्गेषु दश दश उद्देशकाः, पञ्मवर्गे द्वादशोद्देशकाः ।।१५।।
॥ इति निरयावलिकासूत्रं समाप्तम् ।।
पदार्थान्वयः-निरवलिया उवंगे णं-निरयावलिका नामक उपाङ्ग में, एगो सुयक्खंधोएक ही श्रुतस्कन्ध है, पंच वग्गो-पांच वर्ग हैं, पंचसु दिवसेसु उहिस्संति-इसका पांच दिनों में निरूपण किया जाता है, तत्थ चउस वग्गेस-यहां पहले चार वर्गों में, दस दस उद्देसग्गा-दसदस उद्देशक हैं, पंचमवग्गे बारस उद्देसगा-पांचवें वर्ग में बारह उद्देशक हैं ॥१५॥
मूलार्थ - निरयावलिका नामक उपाङ्ग में एक ही श्रुतस्कन्ध है, पांच वर्ग हैं, इसका पांच दिनों में निरूपण किया जाता है यहां पहले चार वर्गों में दस-दस उद्देशक हैं, पांचवें वर्ग में बारह उद्देशक हैं ॥१५॥
टोका-प्रस्तुत सूत्र में भगवान अरिष्टनेमि जी द्वारा महाविदेह क्षेत्र से निषध कुमार द्वारा दीक्षा ग्रहण कर मोक्ष जाने का वर्णन है । शेष अध्ययनों का अर्थ निषध कुमार की तरह समझना चाहिए। संग्रहणी गाथा उपलब्ध नहीं है।
॥ निरयावलिका सूत्र समाप्त ॥