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वर्ग-पंचम
(३७१)
[निरयावलिका
मूल-एवं सेसा वि एक्कारस अज्झयणा नेयव्वा संगहणीमणुसारेण, अहोणमइरित्त एक्कारसस वि । तिबेमि ॥१४॥
॥बारस अज्झयणा समत्ता ॥ ॥ वह्निदसा नामं पंचमो वग्गो समत्तो ॥ ५॥ ॥ निरयावलिका सुयक्खंधो समत्तो ॥ ॥समत्ताणि उवंगाणि ॥ १४ ॥
छाया-एवं शेषाण्यपि एकावशाध्ययनानि ज्ञेयानि संग्रहण्यनुसारेण, अहीनाऽतिरिक्तम् एकादशस्वपि । इति ब्रवीमि ।। ३ ।।
॥ द्वादशाध्ययनानि समाप्तानि ॥ १४ ॥ ॥ वृष्णिदशानामा पञ्चमोवर्गः समाप्तः ॥ ५॥ ॥निरयावलिकाश्रुतस्कन्धः समाप्तः ।।
॥समाप्तानि उपाङ्गानि ।।
पदार्थान्वयः-एवं सेसा वि एक्कारस अज्झयणा नेयम्वा-इसी प्रकार शेष ग्यारह अध्ययनों का भी, संगहणी अणुसारेण-संग्रहणी गाथा के अनुसार, महोणमइरित्त-न्यूनाधिक भाव से रहित, एक्कारससु वि । तिबेमि-शेष ग्यारह अध्ययनों का वर्णन भी जानना चाहिए, जम्बू । जैसा मैंने भगवान से सुना है वही कहा है।
॥ वह्निदशा नामक पंचम वर्ग समाप्त ।।
मूलार्थ- इसी प्रकार शेष ग्यारह अध्ययनों का भी संग्रहणी गाथा के अनुसार न्यूनाधिक भाव से रहित शेष ग्यारह अध्ययनों का वर्णन भी जानना चाहिए । जम्बू ! जैसा मैंने भगवान से सुना वैसा ही मैंने कहा है ॥१४॥
मूल-निरयावलिया-उवंगे णं एगो सयक्खंधो, पंच वग्गा, पंचसु