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________________ निरयावलिका) (३७०) [वर्ग-पंचम वहां से च्यवन करके कहां जाएगा? कहां उत्पन्न होगा ? (भगवान अरिष्टनेमि जी ने कहा-) वह इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र के उन्नात (उन्नाक) नामक नगर में विशुद्ध पितृ-वश में एक राज-कुल में पुत्र के रूप में लौटेगा (उत्पन्न होगा), तब वह बाल्यावस्था बीत जाने पर समझदार होकर युवावस्था को प्राप्त होकर तथा रूप स्थविरों द्वारा केवल-बोधि अर्थात् सम्यक् ज्ञान का ज्ञाता बनेगा । ज्ञान प्राप्त करके गृहस्थ जीवन को छोड़ कर यह अनगार जीवन स्वीकार करेगा, जब वह अनगार बन जायेगा तो ईर्या-समिति आदि का पालन करते हुए पूर्ण ब्रह्मचारी बन जाएगा। तब वह वहां पर चतुर्थ षष्ठम, दशम, द्वादश आदि उपवासों द्वारा मासार्ध एवं मासखमण रूप विचित्र (अद्वितीय) तपस्याओं द्वारा अपनी आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन करेगा, श्रमणपर्याय का पालन करके वह एक मास की संलेखना द्वारा अपनी आत्मा को शुद्ध करेगा, अपनी आत्म-शुद्धि करके (साठ समयों के) भोजनों का उपवास तपस्या द्वारा छेदन करेगा, जिस मोक्ष रूप प्रयोजन की सिद्धि के लिये अनगार साधु नग्न • भाव (नग्नता) द्रव्य भाव से मुण्डित होना, स्नान न करना, अंगुली अथवा दातुन आदि से दान्तों को साफ करना, छत्र धारण न करना, जूते चप्पल आदि का त्याग करना, पाट पर सोना, काष्ठ-तृण आदि पर शयन करना, केशलोच, ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्ण रूप से पालन करना; दूसरों के घरों में भिक्षार्थ प्रवेश करना, तथा प्राप्त भिक्षा मात्र से निर्वाह करना, लाभ-अलाभ में समता रखना, ऊच नीच अर्थात् अच्छे या बुरे शब्दों द्वारा होने वाले ग्राम-कंटकों अर्थात् अनजान ग्रामीणों के द्वारा दिये जानेवाले कष्टों को सहन करना इत्यादि नियमों की आराधना करेगा, आराधना करके अन्तिम श्वास-प्रश्वासों में अर्थात् जीबन के अन्तिम क्षणों में वह सिद्ध-बुद्ध हो जाएगा, और जीवन-मरण सम्बन्धी सभी दु:खों का अन्त कर देगा। __(सुधर्मा स्वामी कहते हैं-) वत्स जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी जी ने जो मुक्त हो चुके हैं. उन्होंने वृष्णिदशा नामक इस प्रथम अध्ययन का उपर्युक्त भाव फरमाया है ॥१३॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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