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________________ निरयावलिका] (३६०) [वर्ग-पंचम वर्षों तक चौला उठाई, दस बारह आदि व्रतों के द्वारा अपनी आत्मा को भावित करते हुए पैंतालीस वर्षों तक श्रामण्य (साधुत्व) पर्याय का पालन करके दो महीनों की संलेखना द्वारा अपनी आत्मा को शुद्ध करके एक सौ बीस भोजनों का अनशन (उपवास) तपस्या द्वारा छेदन करके आलोचना एवं प्रतिक्रमण एवं समाधि-पूर्वक मृत्यु समय आने पर प्राण त्याग कर ब्रह्मलोक नामक देवलोक में मनोरम नाम के विमान मैं देवता के रूप में उत्पन्न हुआ। वहां अनेक देवों की दस सागरोपम की स्थिति कही गई है, अत: वहां पर वीरंगत नाम के देव की स्थिति दस भी सागरोपम की हुई। जम्बू ! वह वीरंगत देव उस ब्रह्मलोक नामक देवलोक से, देव-आय के पूर्ण होने पर वहां से च्यवन करके द्वारका नाम की नगरी में राजा बलदेव की महारानी रेवती देवी की कोख से पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ है (उसकी उत्पत्ति से पूर्व) वह रेवती देवी राजरानी के योग्य सुखद शय्या पर (सोती हुई) स्वप्न में सिंह को देखती है और यथासमय बालक का जन्म हुआ, कमश: उसने यौवन अवस्था प्राप्त की और बत्तीस राज-कन्याओं के साथ से उसका विवाह हुआ । तदनन्तर वह (एक उत्तम राजमहल के ऊपर रहने लगा) और सुखद जीवन व्यतीत करता रहा । हे वरदत्त ! इस प्रकार उस निषध कुमार ने इस प्रकार की अत्युत्तम मानवीय जीवन के योग्य समृद्धियां प्राप्त की थीं। (वरदत्त मुनि ने पुनः प्रश्न किया) भगवन् ! वह निषध कुमार क्या आप देवानुपिय के पास यावत् प्रवजित होने के लिये समर्थ है ? योग्य है ? भगवान ने कहा - हां वरदत्त । वह समर्थ है (प्रव्रजित होगा ही), भगवन् ! (आप कहते हैं वह सत्य ही है। ऐसा कह कर वरदत्त अनगार अपनी आत्मा को तप-संयम से भावित करते हुए विचरने लगे॥१०॥ टीका-प्रस्तुत प्रकरण में वीरंगत कुमार द्वारा धर्म उपदेश के श्रवणार्थ जा रही भीड़ के शोर वर्णन है, जिससे उस नगरी के लोगों की धर्म-प्रवृत्ति का पता चलता है । वोरंगत कुमार भी आचार्य श्री के उपदेश से साधु बन जाता है। साधु बनकर शास्त्रों का स्वाध्याय करता है । पैंतालीस वर्षों तक म पालन कर अन्तिम समय में दो मास की संलेखना द्वारा काल-धर्म को प्राप्त करता है। फिर देव रूप में जन्म लेता है । देव आयुष्य को पूरा कर राजा वलदेव की रानी रेवती के यहां पुत्र के रूप में उत्पन्न होता है ॥१०॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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