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वर्ग-पंचम]
(३५५)
[निरयावलिका
क्योंकि इसे मनचाहा रूप प्राप्त हुआ है, सुन्दर है और इसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ है, यह सबको प्रिय है, क्योंकि इसे सर्वजन प्रिय रूप प्राप्त हुआ है, यह सबको अच्छा लगने वाला है, इसका रूप अत्यन्त मनोरम है, यह सौम्य है इसे सौम्य रूप प्राप्त हुआ है, यह प्रिय-दर्शन एवं सुरूप है । भगवन् ! इस निषध कुमार को इस प्रकार की मानवीय समृद्धि कैसे प्राप्त हुई है ? सूर्याभदेव के विषय में श्री गौतम स्वामी जी की तरह (वरदत्त मुनिराज ने) श्री भगवान् श्री अरिष्टनेमी जी से प्रश्न किया।
(भगवान श्री अरिष्टनेमि जी ने वरदत्त मुनि के प्रश्न का समाधान करते हुए कहा-) वत्स वरदत्त ! उस काल और उस समय में यहीं पर जम्बू द्वीप नामक द्वीप में भरत क्षेत्र में रोहितक नाम का एक नगर था, जो कि धन-धान्यादि से अत्यन्त समृद्ध था। वहां पर मेघवर्ण नाम का एक उद्यान था। उस उद्यान में मणिदत्त नामक एक यक्ष का यक्षायतन (यक्ष-मन्दिर) था, उस रोहितक नगर में महाबल नाम का एक राजा राज्य करता था, उसकी पद्मावती नाम की पटरानी थी, एक रात उस रानी ने अपनी राजरानी के योग्य शय्या पर शयन करते हुए स्वप्न में सिंह देखा, उसके जन्म आदि का वर्णन महाबल के समान ही समझना चाहिये, इतना विशेष है कि उस बालक का नाम वीरंगत रखा गया। वीरंगत कुमार का (विवाह योग्य होने पर) बत्तीस कन्याओं के साथ विवाह हुआ और उसे बत्तीस-बत्तीस प्रकार के दहेज प्राप्त हुए, उसके राज-महलों के ऊपर गायक उसके गुणों का गुणगान करते रहते थे, वह ग्रीष्म वर्षा आदि छहों ऋतुओं सम्बन्धी मनचाहे मानवीय भोगों का उपभोग करते हुए अपना सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था ॥८॥
टोका-निषध कुमार के रूप लावण्य को देख कर भगवान अरिष्टनेमि के गणधर वरदत्त मुनि ने निषध कुमार के पूर्व भब का परिचय पूछा-भगवान ने कहा कि पूर्व भव में रोहितक नगर में महाबल नामक राजा था, उसकी रानी पद्मावती थी। उस रानी ने सिंह का स्वप्न देखा। उनके यहां वीरंगत (वीरांगद) नाम का कुमार उत्पन्न हुना। उसका यौवन अवस्था में ३२ राजकन्याओं के साथ तत्कालीन बहु-पल्ली प्रथा के अनुसार विवाह हुमा ।।८।।