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________________ निरयावलिका) (३५४) [वर्ग-पंचम हआ है, मणन्ने मणामे मणामरूवे--यह सबको अच्छा लगाने वाला है, इसका रूप अत्यन्त मनोज्ञ है, सोमे सोमरूवे - यह सौम्य है इसे सौम्य रूप प्राप्त हुआ है, पियदंसणे सुरूवे—यह प्रिय-दर्शन एवं सरूप है। निसढेणं भन्ते ! कमारेणं-भगवन् इस निषध कुमार ने, अयमेयारूवे माणदइड्रोइसे इस प्रकार की मानवीय समृद्धि, किण्णा लद्धा, किण्णा पत्ता- कैसे उपलब्ध हुई है ! और कसे प्राप्त हुई है ?, पुच्छा जहा सरियाभस्स-सूर्याभदेव के विषय में श्री गौतम स्वामी जा की तरह (व र दत्त मुनिराज ने) श्री अरिष्टनेमी जी से प्रश्न किया। एवं खलु वरदत्ता!-(भगवान श्री अरिष्टनेमि जी ने वरदत्त मुनि के प्रश्न का समाधान करते हुए कहा) वत्स वरदत्त !, तेणं कालेण तेणं समएणं-उस काल और उस समय में, इहेव जम्बद्दीवे दीवे यहीं पर जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारहे वासे-भरत क्षेत्र में, सोडा नाम नयरे होत्था-रोहितक नाम का एक नगर था, रिद्धिस्थिमियसमिद्धे०-जो कि धन-4 4.1द से अत्यन्त समृद्ध था, मेहवन्ने उज्जाणे-वहां पर मेघवणं नाम का एक उद्यान शा, भ.दत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे-उस उद्यान में मणिदत्त नामक एक यक्ष का यक्षायतन (यक्ष-मन्दिर) था, तत्थ णं रोहीडए नयरे महब्बले नाम राया-उस रोहितक नगर में महाबल नाम का एक राजा राज्य करता था, पउमावई नामं देवी-उसकी पद्मावती नाम की पटरानी थी, अन्नया कयाई तसि लारिसगंसि सयणिज्जंसि सीहं सुमिणे-एक रात उसने राजरानी के योग्य शय्या पर शयन करते हुए स्वप्न में एक सिंह देखा, एवं जम्मणं भाणियन्वं जहा महब्बलस्स-उसके जन्म आदि का वर्णन महाबल के समान ही समझना चाहिये । नवर वीरंगओ नाम-इतना विशेष है कि उस बालक का नाम वीरंगत (वीरांगद) रखा गया, बत्तीसओ दाओ बत्तीसाए रायवरकन्नगाणं पाणि जाव उबगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे-महाबल कुमार का (विवाह योग्य होने पर) बत्तीस कन्याओं के साथ विवाह हुआ और उसे बत्तीस-बत्तीस प्रकार के दहेज प्राप्त हुए। उसके राज-महलों के ऊपर गायक उसके गुणों का गुण-गान करते रहते थे, पाउस वरिसारत्तसरयहेमंतवसन्तगिम्हपज्जते छप्पि उऊ जहाविभवेणं भुजमाणे-भुजमाणे-वह ग्रीष्म वर्षा आदि छहों ऋतुओं सम्बन्धी मनचाहे मानवीय भोगों का, गालेमाणे इठ्ठ सद्दे जाव विहर इ-और उपभोग करते हुए अपना सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था ॥८॥ मूलार्थ - उस काल और उस समय में अरिहन्त भगवान श्री अरिष्टनेमी जी के प्रधान शिष्य वरदत्त नामक मुनीश्वर जो अत्यन्त उदार प्रकृति के थे, वे विचरण कर रहे थे। उस वरदत्त नामक मुनीश्वर ने जब निषध कुमार को देखा और उन्हें देख कर उनके हृदय में श्रद्धा जागृत हुई, यावत् उन्होंने भगवान की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार निवेदन किया-"भगवन् ! यह निषध कुमार इष्ट है (इसे सभी चाहते हैं),
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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