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निरयावलिका]
( ३५६)
[वर्ग-पंचम
मूल- -तेणं कालेणं तेणं समएणं सिद्धत्था नाम आयरिया जाई. संपन्ना जहा केसी नवरं बहुस्सुया बहुपरिवारा जेणेव रोहीडिए नयरे जेणेव मेहन्ने उज्जाणे जेणेव भणि दत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागया, अहापडिरूवं जाव विहरंति, परिसा निग्गया ॥६॥
छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये सिद्धार्थो नाम आचार्याः जातिसम्पन्नाः यथा केशी, नवरं बहुश्रुता बहुपरिवारा यत्नव रोहितकं नगरं यत्रैव मेघवर्णमुद्यानं यत्रैव मणिदत्तस्य यक्षस्य यक्षायतनं तंत्रवोपागतः, यथाप्रतिरूपं यावद विहरति परिषद् निर्गता ॥६॥
पदार्थान्वयः-तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल एवं उसी समय में, सिद्धत्था नाम आयरिया जाइ संपन्ना-उच्च जातीय सिद्धार्थ नाम के आचार्य जहा केसी-जो कि मनिराज केशी के समान ही थे, नवरं बहुस्सया बहुपरिवारा-इतना विशेष है कि वे बहुश्रुतए वं विशाल शिष्यपरिवार वाले थे, जेणेव रोहीडए नयरे-उसी रोहितक नाम के नगर में, मेहन्ने उज्जाणे-मेघ वर्ण नामक उद्यान में, जेणेव मणिदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे-जहां पर मणिदत्त नामक यक्ष का यक्षायतन था, तेणेव उवागया-वहीं पर आ गए, अहापडिरूवं जाव विहरंति-और उद्यानपालक से आज्ञा लेकर वे वहीं पर विचरने लगे। परिसा निग्गया-दर्शनार्थ एवं प्रवचन-श्रवणार्थ श्रद्धालु नागरिकों की टोलियां उनका पावन सान्निध्य प्राप्त करने के लिये घरों से निकल पड़ीं ।।।
मूलार्थ-(वरदत्त !) उस काल एवं उसी समय में उच्च जातीय सिद्धार्थ नाम के आचार्य जो कि मुनिराज केशी के समान थे, इतना विशेष है कि वे बहुश्रुत एवं विशाल शिष्य-परिवार वाले थे, उसी रोहितक नाम के नगर में मेघवर्ण नामक उद्यान में जहां पर मणिदत्त नामक के यक्ष का यक्षायतन था वहीं पर आ गए और उद्यानपालक से आज्ञा लेकर वे वहीं पर विचरने लगे। दर्शनार्थ एवं प्रवचन-श्रवणार्थ श्रद्धालु नागरिकों की टोलियां उनका पावन सान्निध्य प्राप्त करने के लिये घरों से निकल पड़ी॥९॥
टोका-प्रस्तुत सूत्र में रोहितक नगरी में आचार्य सिद्धार्थ के पधारने का वर्णन किया गया