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वर्ग-पंचम].
( ३४७)
[निरयावलिका
मूल-तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अग्ट्ठिनेमी आदिकरे दसधणई वण्णओ जाव समोसरिए, परिसा निग्ग। तएणं से कण्हे वासदेवे इमीसे कहाए लद्धठे समाणे हट्ठतुठे० कोडंबियपरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव देवाणुप्पिया ! सभाए सुहम्माए सामुदाणियं भेरि तालेह । तएणं से कोडुबियपुरिसे जाव पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए जेणेव सामुदाणिया भेरी तणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं सामुदाणियं रि महया महया सद्देणं तालेइ ॥५॥
छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये अर्हन् अरिष्टनेमिः आदिकरो दशधनष्को वर्णकः यावत् समवसृतः, परिषत् निर्गता । ततः खलु सः कृष्णो वासुदेवोऽस्याः कथाया लब्धार्थः सन् हृष्टतुष्ट ० कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादोत्-शिप्रमेव देवानुप्रियाः ! सभायां सुधर्मायां तामुदानिकी मेरों ताडयत । ततः खलु ते कौटुम्बिकपुरुषा यावत् प्रतिश्रुत्य यत्रैव सभायां सुधर्मायां सामुदानिको भेरी तनवोपागच्छन्ति, उपागम्य तां सामवानिकी भेरी महता - महता शब्देन ताडयन्ति ||५॥
पदार्थान्वयः-तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल उस समय में, अरहा अरिटुनेमोअरिहन्त प्रभु श्री अरिष्टनेमी जी जो कि, आदिकरे दसधणूइं वणो जाव समोसरिए-दस धनुष प्रमाण शरीरवाले थे और धर्म के आदि-कर थे अर्थात् जो इक्कीसवें तीर्थङ्कर श्री नमिनाथ के अनन्तर हजारों वर्षों के बाद धर्म का प्रवर्तन करने वाले थे, वे द्वारिका नगरी में पधारे। परिसा निग्गया-उनके दर्शनों एवं प्रवचनों के श्रवणार्थ नागरिकों के समूह अपने अपने घरों से निकले।
तएणं से कण्हे वासुदेवे-तदनन्तर वासुदेव श्री कृष्ण, इमीसे कहाए लट्ठ समाणे-भगवान् अरिष्टनेमि जी के आगमन की सूचना प्राप्त होते ही, हठ्ठतुठे-अत्यन्त प्रसन्न होकर, को बियपुरिसे --अपने पारिवारिक सेवकों को, सहावेइ-बुलवाते हैं, सहावित्ता और बुलवा कर, एवं वयासी-उन्हें इस प्रकार आदेश दिया, खिप्पामेव देवाणुप्पिया! हे देवानुप्रियों ! आप लोग शीघ्र ही, सभाए सुहम्माए-सुधर्मा सभा में पहुंचकर, सामुदाणियरि–सामुदानिक भेरी (वह भेरी जिसके बजने पर सभी अपेक्षित जन एकत्रित हो जायें), तालेहि-बजाओ, तएणं से कोम्बिय पुरिसे-तदनन्तर वह सेवक वर्ग, वासुदेव श्री कृष्ण की आज्ञा सुनकर, जेणेव सभाए सुहम्माए-जहां पर सुधर्मा सभा थी और जहां, सामंदाणिया भेरी–सामुदानिक भेरी थी, तेणेव उवागच्छति-वहीं पर आते हैं, उवागछित्ता-और वहां पहुंच कर, सामुदाणियं भरि-सामु